#daduji
卐 सत्यराम सा 卐*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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*जाया माया मोहनी*
बिना भुवँगम हम डसे, बिन जल डूबे जाइ ।
बिन ही पावक ज्यों जले, दादू कुछ न बसाइ ॥ ८२ ॥
कनक कामिनी की मोहकता बता रहे हैं - सँसारी प्राणी बिना सर्प डसे ही काम - वश सर्प डसे हुये के समान आत्मज्ञान - शून्य हो रहे हैं । बिना जल ही विषय मोह में डूबते जा रहे हैं । जैसे तृण अग्नि से जलते हैं, वैसे ही बिना अग्नि ही शोक से जल रहे हैं । उक्त उपज्यों से बचना भी चाहते हैं किन्तु भगवद् भजन बिना कोई शक्ति काम नहीं देती ।
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*विषय अतृप्ति*
दादू अमृत रूपी आप है, और सबै विष झाल ।
राखणहारा राम है, दादू दूजा काल ॥ ८३ ॥
८३ में कहते हैं - एक राम ही रक्षक हैं - राम अमृत रूप हैं, भजन द्वारा अमर करते हैं । अन्य सब विष की ज्वालाओं के समान दाहक हैं । राम ही रक्षक हैं, अन्य सब तो स्वार्थी होने से काल रूप ही हैं ।
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*जग भुलावनि*
बाजी चिहर रचाय कर, रह्या अपरसन होइ ।
माया पट पड़दा दिया, तातैं लखे न कोइ ॥ ८४ ॥
८४ - ९३ में कहते हैं - ईश्वर - बाजीगर ने सँसार - बाजीगरी द्वारा जीवों को भ्रमा रक्खा है - ईश्वर - बाजीगर अद्भुत चहल - पहल रूप सँसार - बाजी रच के अपने आड़े माया - पट का पड़दा लगा कर छिप रहा है । इसलिए उसके वास्तव स्वरूप को कोई भी अज्ञानी नहीं जान पाता ।
(क्रमशः)
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