गुरुवार, 8 जून 2017

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卐 सत्यराम सा 卐
पंच चोर चितवत रहैं, माया मोह विष झाल ।
चेतन पहरै आपने, कर गह खड़ग संभाल ॥ 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat

एक राजा ने दरबार में सुबह ही सुबह दरबारियों जो बुलाया । उसका दरबार भरता ही जाना था की एक अजनबी यात्री वहा आया । वह किसी दूर देश का रहने वाला होगा । उसके वस्त्र पहचाने हुए से नही मालूम पड़ते थे । उसकी शक्ल भी अपरिचित थी, लेकिन वह बड़े गरिमाशाली और गौरवशाली व्यक्तित्व का धनी मालूम होता था ।
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सारे दरबार के लोग उसकी तरफ देखते ही रह गए । उसने एक बड़ी शानदार पगड़ी पहन रखी थी । वैसी पगड़ी उस देश में कभी नही देखी गयी थी । वह बहुत रंग - बिरंगी छापेदार थी । ऊपर चमकदार चीजे लगी थी । 
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राजा ने पूछा - अतिथि ! क्या मैं पूछ सकता हूँ की यह पगड़ी कितनी महंगी है और कहा से खरीदी गयी है ? उस आदमी ने कहा - यह बहुत महंगी पगड़ी है । एक हजार स्वर्ण मुद्रा मुझे खर्च करनी पड़ी है ।
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वजीर राजा की बगल में बैठा था । और वजीर स्वभावतः चालाक होते हैं, नहीं तो उन्हें कौन वजीर बनाएगा ? उसने राजा के कान में कहा - सावधान ! यह पगड़ी बीस - पच्चीस रुपये से जादा की नहीं मालूम पड़ती । यह हजार स्वर्ण मुद्रा बता रहा है । इसका लूटने का इरादा है । उस अतिथि ने भी उस वजीर को, जो राजा के कान में कुछ कह रहा था, उसके चेहरे से पहचान लिया । वह अतिथि भी कोई नौसिखिया नहीं था । उसने भी बहुत दरबार देखे थे और बहुत दरबारों में वजीर और राजा देखे थे ।
वजीर ने जैसे ही अपना मुंह राजा की कान से हटाया, वह नवांगतुक बोला - क्या मैं फिर लौट जाऊं ? मुझे कहा गया है की एक ही राजा है इस धरती पर, जो पगड़ी को एक हजार स्वर्ण मुद्राओं में खरीद सकता है । तो क्या मै लौट जाऊं ? क्या यह दरबार वह दरबार नहीं है ? और मैं समझूँ कि यह दरबार, वह दरबार नहीं है जिसकी की मै खोज में हूँ ? मै कहीं और जाऊं ? मैं बहुत से दरबारों से वापस आया हूँ । राजा ने कहा दो हजार स्वर्ण मुद्रा दोऔर पगड़ी खरीद लो । वजीर बहुत हैरान हुवा । जब वजीर चलने लगा तो उस आए हुए अतिथि ने वजीर के कान में कहा -
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फ्रेंड ! "यू मे बी नोइंग द प्राइस ऑफ़ द टर्बन, बट आइ नो द वीकनेसेस ऑफ़ द किंग" 
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तुम जानते हो की पगड़ी के दाम कितने हैं, लेकिन मै राजाओं की कमजोरियां जानता हूँ । पादरी, पुरोहित और धर्मगुरु ईश्वर को तो नही जानते है, आदमी की कमजोरियों को जानते हैं और यही उनसे खतरा है । उन्ही कमजोरियों का शोषण चल रहा है । आदमी बहोत कमजोर है और बड़ी कमजोरिया है उसमेँ । उसकी कमजोरियों का शोषण हो रहा है । स्मरण रखे - जो परमात्मा की शक्ति को जानता है, उसके लिए धरती पर कोई कमजोरी नहीं रह जाती और जो परमात्मा को पहचानता है, उसके लिए शोषण असंभव है ।
*ओशो*

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