गुरुवार, 8 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/३१-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
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*तिन कौ गुरु या जग मैं नांमी ।*
*बुद्ध्यानन्द बुद्धि को स्वांमी ।*
*सब के अन्तर्गत की जानैं ।*
*वा तैं कछू रह्यौ नहिं छानैं ॥३१॥*
जगत्प्रसिद्ध, स्थितप्रज्ञ श्री बुद्ध्यानन्दजी उनके गरु थे । वे इतने मतिसम्पन्न थे कि सबके हृदय की गुप्त से गुप्त बात को भी जान लेते थे । उनसे किसी का कैसा भी भेद गुप्त नहीं रह सकता था ॥३१॥
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*तिन के गुरु के और न छौरा ।*
*रमतानन्द रमैं सब ठौरा ।*
*तीनि लोक में अटक न कोई ।*
*तासौं मिलै सु तैसा होई ॥३२॥*
उनके गुरु का तो कोई आदि-अन्त ही नहीं पता लगता था । वे हर जगह रमते रहते थे, इस लिये उनका नाम था श्रीरमतानन्द जी । तीनों लोकों में उनके लिये कोई भी स्थान अगम्य नहीं था । उनसे सत्संग करने वाला साधक भी उन्हीं की तरह वीतराग व वितृष्ण होकर स्थान का मोह छोड़ रमताराम(किसी एक जगह कुटिया बाँधकर न रहने वाला) हो जाता था ॥३२॥
(क्रमशः)

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