रविवार, 18 जून 2017

= १०६ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*सहज रूप मन का भया, जब द्वै द्वै मिटी तरंग ।*
*ताता शीला सम भया, तब दादू एकै अंग ॥
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साभार ~ Gems of Osho

मैंने सुना है, तीन उचक्के एक दुकान पर गए। भीड़ लगी थी, मिठाई की दुकान थी। उस गांव में सबसे जाहिर और प्रसिद्ध दुकान थी। वे भीड़ में तीनों खड़े हो गए। फिर एक ने कहा कि अब बड़ी देर हो गई रुपया दिए, न मिठाई आती है, न बाकी पैसे वापस लौट रहे हैं। उस दुकानदार ने आंख उठाई, उसने कहा, कैसा रुपया ! झगड़ा झांसा शुरू हो गया। वह आदमी कह रहा था कि मैंने आठ आने की मिठाई मांगी, तो आठ आने वापस चाहिए। न मिठाई मिली है, न आठ आने वापस मिले हैं। उसने कुछ रुपया वगैरह दिया नहीं था।
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दूसरे उचक्के ने कहा कि नहीं, यह हो ही नहीं सकता, क्योंकि यह दुकानदार बड़ा ईमानदार आदमी है। ऐसा कभी हुआ ही नहीं, तू गलती में है बड़ा झगड़ा झांसा मच गया। जब यह सब चल रहा था, तब उस दूसरे उचक्के ने कहा कि मियां लाला ! कहीं इस झंझट में मेरा रुपया मत भूल जाना।
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अब सेठ जरा मुश्किल में पड़ा कि अगर वह कहे कि तूने भी रुपया नहीं दिया, तो यह सारी भीड़ मेरे ही खिलाफ हो जाएगी कि तुम्हीं एक सेठिया सराफ, सारी दुनिया चोर बेईमान ! और यह आदमी तो बड़ा भला आदमी है, यह तो कह ही रहा है कि सेठ बड़ा भला आदमी है, ईमानदार है; यह कभी ऐसा कर ही नहीं सकता है। इसके पहले कि कुछ वह बोले, तीसरा उचक्का बोला कि यह तो ठीक है, इनका तो रुपये रुपये का मामला है, मेरा पांच का नोट है। उस सेठ ने सोचा कि अब जल्दी ही-ही कह देना ठीक है, नहीं तो यह पूरी भीड़ खड़ी है, कोई कुछ भी कहने लगे, कोई सौ का ही नोट बताने लगे। उसने कहा, भाई बिलकुल ठीक है; तुम तीनों ले लो, मुझसे भूल हो गई है।
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तुमने कभी गौर किया, जो तुमसे कहता है, तुम बड़े सुंदर, तुम बड़े बुद्धिमान, तुम बड़े तेजस्वी, तुम बड़े ईमानदार, उसके कुछ प्रयोजन होंगे, उसके कुछ अपने निहित स्वार्थ होंगे। तुम चकित होओगे कि संसार में दूर जिनसे तुम्हारा कोई लेना—देना है, उनके स्वार्थ होंगे वह तो ठीक ही है, जो तुम्हारे बिलकुल निकट हैं, उनके भी स्वार्थ हैं।
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मां भी अपने बेटे से कहती है कि तुझसे सुंदर कोई भी नहीं है। सभी मां ऐसा मानती हैं। उसमें भी स्वार्थ है। स्वार्थ यह है कि मेरा बेटा असुंदर हो कैसे सकता है? मेरा बेटा है। बेटे के सौंदर्य पर तो मां का सौंदर्य निर्भर है, क्योंकि फल से तो ही वृक्ष पहचाना जाता है। बाप कहता है, तुम बड़े बुद्धिमान, बड़े होशियार।
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मेरे पास लोग आते हैं, वे अपने बच्चों की तारीफ करते हैं। मैं चकित होता हूं। अगर सबके बच्चे इतने अदभुत हैं तो यह दुनिया बड़ी अदभुत हो जाए, लेकिन ये सब, बाद में सब खो जाते हैं। *बच्चे अदभुत होने ही चाहिए इसमें मां—बाप का स्वार्थ है। ये उनके सबूत हैं, प्रमाण हैं। फिर जब ये बच्चे अदभुत सिद्ध नहीं होते तो मां—बाप पीड़ित, परेशान होते हैं। इसलिए तुम मां—बाप को कभी भी प्रसन्न न पाओगे। एक झूठ दूसरी झूठ में ले जाती है। कोई मां—बाप प्रसन्न नहीं होता, बच्चे कुछ भी बन जाएं।*
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मैंने तो एक कहानी सुनी है कि एक यहूदी महिला मरी; उसके मन में सदा से एक ही प्रश्न था कि अगर स्वर्ग गई तो मुझे मरियम से—जीसस की मां से पूछना है एक सवाल। जब वह मरी, भाग्य से स्वर्ग पहुंची। उसने पहली ही बात जो पूछी दरवाजे पर, वह यह कि मुझे मरियम के पास जाना है, एक सवाल मुझे पूछना है। वह मरियम के पास ले जाई गई। मरियम ने कहा, मुझे पता है, यह सवाल तेरे मन में सदा से है; अब तू पूछ ही ले।
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उसने कहा कि सवाल मेरा यह है कि संसार में मैंने कभी किसी मां—बाप को. जब बच्चे पैदा होते हैं, तब उनके गुणगान करते सुना है सदा; बच्चे जब पैदा होते हैं तो किसी मां—बाप को मैंने उनकी निंदा करते नहीं सुना। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और जीवन में उतरते हैं तो सभी मां—बाप को उनकी निंदा करते सुना है, तब मैंने कभी प्रशंसा करते नहीं सुना। इससे मैं बड़ी बेचैन और परेशान रही हूं। तुमने तो कम से कम अपने बेटे की प्रशंसा की होगी। तुम्हारा बेटा तो जीसस ! मरियम, कहते हैं, उदास हो गई; उसने कहा, हमने तो सोचा था डाक्टर बनेगा।
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*मां बाप भी तुमसे जो कह रहे हैं, वह तुम्हारा सत्य नहीं है, वे उनकी आकांक्षाएं हैं। बाहर भी लोग तुमसे जो कह रहे हैं, वह भी तुम्हारा सत्य नहीं है, उनकी सुविधाएं हैं।* और इन्हीं सब के आधार पर तुम अपनी प्रतिमा निर्मित करते हो कि तुम कौन हो। ये बाहर के चीथड़े थेगड़े इकट्ठे करके, अखबारों की कतरनें लगाकर, जोड़कर तुम अपनी प्रतिमा बना लेते हो।
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*इस प्रतिमा के कारण ही तुम्हें भीतर जाने में अड़चन होने लगती है कैसे इसको छोड़ो ! इसमें पूरा जीवन न्योछावर किया है, कैसे इसे तोड़ो ! और आत्मविजय के लिए इसका टूट जाना जरूरी है। क्योंकि तुम अपने को तभी जान सकोगे, जब तुमने दूसरों से जो भी अपने संबंध में सुना है, वह सब तुम छोड़ दो; तभी तुम अपना साक्षात्कार कर सकोगे सीधा सीधा; अपने आमने सामने हो सकोगे।*
*एस धम्मो सनंतनो ~ ओशो*

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