सोमवार, 19 जून 2017

= माया का अंग =(१२/७९-८१)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
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*विरक्तता* 
दादू केते जल मुये, इस योगी की आग । 
दादू दूरै बँचिये, योगी के संग लाग ॥ ७९ ॥ 
७८ में माया से विरक्त होने का आदेश दे रहे हैं - इस परमेश्वर रूप योगी की माया - अग्नि की काम - क्रोधादि - ज्वालाओं में अनेक जल कर मर गये हैं । अत: शीघ्र ही परमेश्वर - योगी की भजन रूप समीपता में जाकर मायाग्नि से बचो । 
*माया* 
ज्यों जल मैंणी माछली, तैसा यहु सँसार । 
माया माते जीव सब, दादू मरत न बार ॥ ८०॥ 
७९ - ८० में माया मद का प्रभाव बता रहे हैं - जैसे जल में रहने वाली मच्छी रसना - वश बँसी पकड़ कर तत्काल मर जाती है । वैसे ही इस सँसार के जीव माया के मद से मस्त होकर मरते रहते हैं । 
दादू माया फोड़े नैन दो, राम न सूझे काल । 
साधु पुकारें मेर चढ़, देख अग्नि की झाल१ ॥ ८१ ॥ 
कनक कामिनी आदि के मोह में फंसा कर, माया ने जीव के विवेक - विचार दोनों नेत्र फ़ोड़ डाले हैं । इसलिए उसे अपना नाशक काल और रक्षक राम दोनों ही नहीं दीखते । मायाग्नि की काम - क्रोधादि ज्वालाओं१ में जलते हुये जीवों को देखकर भगवत् साक्षात्कार रूप पर्वत पर चढ़े हुये सन्त पुकार - पुकार कर बारम्बार कह रहे हैं - "भगवद् भजन में मन लगाओ, तभी इन ज्वालाओं से बचोगे ।" किन्तु वे सुनते ही नहीं ।
(क्रमशः)

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