#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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*काम*
दादू यहु तो दोजख देखिये, काम क्रोध अहँकार ।
रात दिवस जरबो करे, आपा अग्नि विकार ॥ ६४ ॥
६४ - ६९ में कहते हैं - कामादि गुण और कामियों का संग त्याज्य है । हे साधको ! इन काम, क्रोध अहँकारादि को नरक रूप देखकर इनसे दूर रहो । इस अहँकारादि विकार रूप नरकाग्नि में प्राणियों के अन्त:करण रात - दिन जलते रहते हैं ।
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विषय हलाहल खाइ कर, सब जग मर मर जाइ ।
दादू मोहरा नाम ले, हृदय राखि ल्यौ लाइ ॥ ६५ ॥
सब जगत के प्राणी विषयासक्ति - महाविष खाकर बारँबार जन्मते मरते जा रहे हैं । उससे बचने के लिए निरंजन राम का नाम रूप जहरमोहरा(विषघ्न वस्तु) हृदय में रखते हुये राम में ही वृत्ति लगानी चाहिए ।
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जेती विषया विलसिये, तेती हत्या होइ ।
प्रत्यक्ष मानुष मारिये, सकल शिरोमणि सोइ ॥ ६६ ॥
जितना वीर्य का पतन होता है उतनी ही प्रत्यक्ष मानव मारने की हत्या होती है, जो सभी हत्याओं में शिरोमणि हत्या है ।
(क्रमशः)
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