रविवार, 18 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/४७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
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*यह पद्धति प्रतिलोम सुनाई ।*
*जहं तें भई तहां पहुँचाई ।*
*संप्रदाय यौं चली हमारी ।*
*आदि अन्त तुम लेहु बिचारी ॥४७॥*
इस तरह मैंने प्रतिलोमपद्धति से अपनी गुरुप्रणाली सुना दी । वह जहाँ से चल कर मुझ तक आयी थी, मैंने वापस वहीं तक पहुँचा कर तुम्हें सुना दिया । यों हमारा श्रीदादूसम्प्रदाय चला । अब तुम इसका आदि अन्त, जिसके जानने की तुम्हारी प्रबल इच्छा थी, भली-भांति समझ गये होगे ॥४७॥
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*=== उपसंहार ===*
*= दोहा =*
*परम्परा१ परब्रह्म तें, आयौ चलि उपदेश ।*
*सुन्दर गुरु तें पाइये, गुरु बिन लहै न लेश ॥४८॥*
(१. सम्प्रदाय-पद्धिति ब्रह्म(ब्रह्मानन्द) तक पहुंचा दी गयी और उधर बृद्धानन्द और उससे श्रीदादू और उससे सुन्दर, बस हो चुका । इसको प्रतिलोम अर्थात् उलटा लिखा है । सुलटा(अनुलोम) ब्रह्मानन्द से चलता और श्रीसुंदरदास पर समाप्त होता । इस की व्याख्या स्वयं ग्रंथकर्त्ता ने आगे के छंदों में स्पष्ट कर दी है । और भेद भी दरसा दिया है -"सम्प्रदाय यह ग्रंथ है, ग्रंथित गुरु को ज्ञान । सुंदर गुरु तै पाइये, गुरु बिन लहै न आन" ॥५२॥)
महराज कहते हैं--हमारा यह साम्प्रदायिक उपदेश नया नहीं है, यह तो परम्परा परब्रह्म परमात्मा से चल कर हम तक पहुँचा है । हाँ, इसे यथार्थतः वही जान सकता है जो गुरु की शरण में जाय । गुरु के उपदेश बिना कोई इस बारे में कुछ भी नहीं जान पाता ॥४८॥
(क्रमशः)

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