#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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काम कठिन घट चोर है, मूसे१ भरे भँडार ।
सोवत ही ले जायगा, चेतन पहरे चार ॥ ५५ ॥
यह काम - चोर ऐसा निष्ठुर है - मोह निद्रा में सोते ही ज्ञान वैराग्यादि दैवी गुण - रत्नों का भँडार चुरा१ ले जायेगा । अत: आयु की (१)शिशु, (२)किशोर, (३)युवा, और (४)वृद्ध चारों ही अवस्थाओं में सावधान रहना चाहिए ।
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ज्यों घुण लागै काठ को, लोहे लागै काट ।
काम किया घट जाजरा, दादू बारह बाट ॥ ५६ ॥
जैसे घुण लगने से काष्ठ और काट मैल लगने से लौह निरर्थक हो जाते हैं वैसे ही काम से शरीर जर्जर हो जाता है और अन्त:करण की वृत्ति नाना वासनाओं से छिन्न - भिन्न हो जाती है । भगवत् - स्वरूप में स्थिर नहीं रहती ।
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*करतूति=कर्म*
राहु गिले ज्यों चन्द को, गहण गिले ज्योँ सूर ।
कर्म गिले यों जीव को, नखशिख लागे पूर ॥ ५७ ॥
५७ - ५९ में कहते हैं - निज कर्म से ही पतन और उन्नति होती है - जैसे ग्रहण के समय राहु चन्द्रमा को और केतु सूर्य को निगल जाते हैं, तब अँधकार हो जाता है । वैसे ही जब निषिद्ध सकाम कर्मों की अधिकता से जीव का मन रूप चन्द्रमा मलीन हो जाता है और विवेक रूप सूर्य भी भोग - वासनाओं से आच्छादित हो जाता है, तब जीव के शरीर में नख से शिखा पर्यन्त अज्ञानाँधकार ही परिपूर्ण हो जाता है, यही कर्म का जीव को निगलना है ।
(क्रमशः)
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