शनिवार, 29 जुलाई 2017

= माया का अंग =(१२/१६४-६)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अंग १२*
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माया सांपिनि सब डसे, कनक कामिनी होइ ।
ब्रह्मा विष्णु महेश लौं, दादू बचे न कोइ ॥१६४॥
माया - सर्पिणी कनक और कामिनी का रूप धारण करके सबको डसती है । ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक भी इससे नहीं बच पाते ।

माया मारे जीव सब, खँड खँड कर खाइ ।
दादू घट का नाश कर, रोवे जग पतियाइ१॥१६५॥
माया - भोग - वासना के बल से सब जीवों की वृत्ति को खँड - खँड करके अन्त:करण को खराब करती है फिर परमार्थ से गिरा देती है । इस प्रकार सब जीवों को मारती है । इस दु:ख से रोते हुये जीव पुन: रक्षार्थ उसी का विश्वास१ करते हैं ।

बाबा बाबा कह गिले, भाई कह कह खाइ ।
पूत पूत कह पी गई, पुरुषा जनि पतियाइ ॥१६६॥
यह नारी रूप माया बाबा - बाबा, भाई - भाई और पुत्र - पुत्र कह कर भी अनुराग द्वारा परमार्थ से गिराती है । अत: पुरुषों को इसका विश्वास नहीं करना चाहिए ।
(क्रमशः)

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