#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अंग १२*
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ब्रह्मा विष्णु महेश की, नारी माता होइ ।
दादू खाये जीव सब, जनि रु पतीजे कोइ ॥१६७॥
यह माया ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की भी प्रकृति रूप से माता हो जाती है और स्त्री रूप से पत्नी हो जाती है । इसी प्रकार इसने सभी जीवों को परमार्थ से गिराया है । अत: इसका विश्वास किसी को भी नहीं करना चाहिए ।
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माया बहुरूपी नटणी नाचे, सुर नर मुनि को मोहै ।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर बाहे, दादू बपुरा को है ॥१६८॥
बहु रूप धारण करने वाली माया - नटनी नृत्य करती है तब सुर, नर और मुनियों को भी मोहित कर लेती है । ब्रह्मा, विष्णु और महादेव को भी बहका देती है । तब बेचारे साधारण जीव को बहका दे, इसमें तो कहना ही क्या है ?
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माया फांसी हाथ ले, बैठी गोप१ छिपाइ ।
जे कोइ धीजे२ प्राणियाँ, ताही के गल बाहि ॥१६९॥
माया विषयासक्ति रूप फांसी हाथ में लेकर सम्पूर्ण पृथ्वी के रक्षक परमात्मा१ को छिपाकर बैठी है, जो कोई प्राणी इस पर रक्षक रूप से विश्वास२ करता है उसी के अन्त:करण रूप गले में विषयासक्ति - पाश डालकर विषयों में आसक्त कर लेती है । अत: इस पर रक्षक रूप से विश्वास न करना चाहिए ।
(क्रमशः)
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