🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बावनी(ग्रन्थ१३) =*
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*आदि न अंत मध्य कहु कैसा,*
*आशा पास नहीं कुछ ऐसा ।*
*आवे जाय न सुप्त न जागे,*
*आहि अखंडित पीछे आगे॥११॥*
*(आ)* उसका न कोई आदि है, न अन्त, न मध्य; अतः उसका 'इदमित्थम्' करके वर्णन नहीं किया जा सकता । क्योंकि वह देहेन्द्रियादिक में असक्त हैं, अतः उसमें किसी प्रकार का तृष्णाजाल(वासनाजाल) भी नहीं हो सकता । न उसमें आगमन, गमन, सुषुप्ति जागृति आदि क्रियाएँ हैं । वह आगे पीछे से अखण्डनीय है, (उसका किसी भी भी तरह से) खण्ड(टुकड़ा, विभाजन) नहीं किया जा सकता ॥११॥
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*इत उत जित कित हे भरपूरा,*
*इडा पिंगला से अति दूरा ।*
*इच्छा रहित इष्ट को ध्यावे,*
*इतनी जाने तो इत पावे ॥१२॥*
*(इ)* वह इधर से, उधर से किधर से भी(सभी तरफ से) पूर्ण है । इडा, पिंगला, सुषुम्णा से भी बहुत दूर है अतः अग्राह्य है(अर्थात् वह योगविधि से भी अगम्य है) । यदि साधक इच्छा(कामना) रहित होकर इस इष्ट(ब्रह्म) का ध्यान करे तो वह साधक परम गति प्राप्त कर सकता है ॥१२॥
(क्रमशः)
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