रविवार, 13 अगस्त 2017

= साँच का अंग =(१३/२२-४)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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सो काफिर१ जे बोले काफ२, दिल अपना नहिं राखे साफ । 
सांई को पहचाने नाँहीं, कूड़ कपट सब उनहीं माँहीं ॥ २२ ॥ 
वे ही नास्तिक१ हैं जो सत्य को मिथ्या२ कहते हैं, अपना हृदय शुद्ध नहीं रखते, ईश्वर को नहीं पहचानते । उन्हीं में सब बुराइयाँ और कपट रहते हैं । 
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सांई का फरमान न मानैं, कहां पीव ऐसे कर जानैं । 
मन अपने में समझत नाँहीं, निरखत चलैं आपनी छाँहीं ॥ २३ ॥ 
परमात्मा की आज्ञा नहीं मानते । "ईश्वर कहां है ? उसकी केवल कल्पना कर रक्खी है", ऐसा जानते हैं । अपने मन में वास्तविकता को नहीं समझते । अपने को शरीर रूप मान कर, शरीर की छाया देखते हुये चलते हैं और छाया देख कर फूलते हैं । 
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जोर करे मसकीन१ सतावे, दिल उसके में दर्द न आये । 
सांई सेती२ नाँही नेह, गर्व करे अति अपनी देह ॥ २४ ॥ 
अपनी शक्ति से गरीबों१ को सताते हैं और गरीबों को विपत्ति में देखकर भी उनके हृदय में दया नहीं आती । ईश्वर से२ तो उनका प्रेम होता ही नहीं । वे तो अपने शरीर के बल आदि का ही गर्व करते रहते हैं ।
(क्रमशः)

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