#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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सो काफिर१ जे बोले काफ२, दिल अपना नहिं राखे साफ ।
सांई को पहचाने नाँहीं, कूड़ कपट सब उनहीं माँहीं ॥ २२ ॥
वे ही नास्तिक१ हैं जो सत्य को मिथ्या२ कहते हैं, अपना हृदय शुद्ध नहीं रखते, ईश्वर को नहीं पहचानते । उन्हीं में सब बुराइयाँ और कपट रहते हैं ।
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सांई का फरमान न मानैं, कहां पीव ऐसे कर जानैं ।
मन अपने में समझत नाँहीं, निरखत चलैं आपनी छाँहीं ॥ २३ ॥
परमात्मा की आज्ञा नहीं मानते । "ईश्वर कहां है ? उसकी केवल कल्पना कर रक्खी है", ऐसा जानते हैं । अपने मन में वास्तविकता को नहीं समझते । अपने को शरीर रूप मान कर, शरीर की छाया देखते हुये चलते हैं और छाया देख कर फूलते हैं ।
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जोर करे मसकीन१ सतावे, दिल उसके में दर्द न आये ।
सांई सेती२ नाँही नेह, गर्व करे अति अपनी देह ॥ २४ ॥
अपनी शक्ति से गरीबों१ को सताते हैं और गरीबों को विपत्ति में देखकर भी उनके हृदय में दया नहीं आती । ईश्वर से२ तो उनका प्रेम होता ही नहीं । वे तो अपने शरीर के बल आदि का ही गर्व करते रहते हैं ।
(क्रमशः)
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