रविवार, 13 अगस्त 2017

= बावनी(ग्रन्थ १३/३५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
.
*ढढा ढरतहि ढारै पासा,*
*ढारै अब जिनि देखि तमासा ।*
*ढूंढे चौपडि ढलि मलि जाई,*
*दुबका तब काहैकौ खाई ॥३५॥* 
*(ढ)* 'ढ' अक्षर हमको यह शिक्षा देता है कि जैसे जुआड़ी जूवा खेलने(पासा फेंकने) से पूर्व पासों की गति को मन में निश्चय कर पासा फेंकता है, और पासा फेंकने के बाद वह फिर तमाशा नहीं देखता, बल्कि चौपड़ की उस कमजोर जगह को बराबर ध्यान में रखता है जहाँ से उसकी विजय सुनिश्चित हो, इतना सावधान आदमी धोखा कैसा खा सकता है, फिर तो उसकी विजय सुनिश्चित है; उसी तरह साधक यदि एक बार संसारसुख का व्यामोह छोड़ कर तत्वमार्गणा की ओर चल पड़ता है तो वह फिर उसमें ढिलाई नहीं करता, अपितु यम-नियम, प्राणायामादि योगसाधनों द्वारा इन्द्रियनिग्रह कर उन पर निरन्तर ध्यान रखता है कि वे मन-इन्द्रियाँ कहीं फिर से सांसारिक सुखों की ओर फिसल न जाँय । ऐसा सावधान साधक बिना तत्वज्ञान(मोक्ष) प्राप्त किये बीच में कैसे धोखा खा सकता है !॥३५॥
.
*णण्णा रूणझुण बाजै वीणां,*
*नारायण मारग अति झीणां ।*
*णाम प्रवीण दोई जे कोई,*
*णागर मरण मिटावै सोई ॥३६॥*
*(ण)* "ण' से साधक को वीणा की झंकार(अनहद नाद) सुनायी देता है, उसे नारायण(भगवान्) की ओर ले जाने वाला मार्ग, जो कि अतिसूक्ष्म है, सपष्ट दिखायी देने लगता है । निरन्तर हरिनाम का कीर्तन करने वाला साधक अपने लक्ष्य(मोक्षप्राप्ति) में पूर्ण हो जाता है । भगवान् उसका मृत्युभय(संसार में आवागमन) मिटा देते हैं ॥३६॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें