🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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*करत करत अक्षर का जोरा,*
*निशा वितीत प्रगट भयो भोरा ।*
*सुन्दरदास गुरुमुख जाना,*
*खिरै नहिं तासौं मन माना ॥५७॥*
महाराज कहते हैं - इस तरह प्रत्येक अक्षर पर विचार करते-करते हमारा अज्ञानान्धकार विनष्ट हो गया । ज्ञानरूपी प्रभात के सूर्य का उदय हो गया । इन अक्षरों का यह सूक्ष्म अर्थ हमने अपने गुरु से जाना है । ये अक्षर कभी खिरते नहीं, मिटते नहीं, इसलिये इन्हें अक्षर कहते हैं । अर्थात् ये अव्यय(अविनाशी) ईश्वर के बोधक हैं ॥५७॥
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*क्षर मांही अक्षर लिख्या,*
*सतगुरु के जु प्रसाद ।*
*सुंदर ताहि विचारतैं,*
*छूटा सहजि विषाद ॥५८॥*
हमने गुरु-कृपा से हर रोज लिखे तथा मिटाये जाने वाले वर्णों का वास्तविक स्थायी अक्षरत्व समझ लिया । उसी अक्षरत्व के निरन्तर चिन्तन से हमारे सांसारिक दुःख द्वंद्व सहज ही मिट गये-- ऐसा हमारा विश्वास है ॥५८॥
॥ यह बावनी नामक ग्रन्थ समाप्त ॥
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