शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

= बावनी(ग्रन्थ १३/४५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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*भभ्भा भया सिंधु का मेला,*
*भारी भेट बूझि लै चेला ।*
*भिष्टाभोजन भरि भरि खाई,*
*भंडारा गुरु बांट्या आई ॥४५॥*
*(भ)* 'भ' कहता है कि रे साधक ! सिद्ध पुरुषों का मेला लगा हुआ है, तूँ भी उनका सत्संग कर अपना भाग्य आजमा ले । और तुझे जो त्वचिन्तन में शंका-सन्देह हो उनकी बारे में पूछ कर अपना भ्रम-निवारण कर ले । उनका साथ करने का एक लाभ यह भी मिलेगा कि वहाँ रहने से उतने दिन भिक्षा की चिन्ता नहीं रहेगी; क्योंकि वे भरपेट भोजन-भिक्षा(ज्ञान-भिक्षा) बिना माँगे ही सत्पात्र को देने के लिये लालायित रहते हैं । वे गुरुदेव इतने दयालु हैं ॥४५॥
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*मम्मा मरि ममता मति आनै,*
*मोम होइ तब मेरम जाने ।*
*मदही मान मैल होइ दूरी,*
*मनमैं मिलै सजीवनि मूरी ॥४६॥*
*(म)* 'म' अक्षर कहता है कि साधक को संसार के प्रति मोह-ममता का त्याग कर देना चाहिये । और गुरु के सामने मोम की तरह मृदु(कोमल, विनीत) व्यवहार रखना चाहिये, ताकि वे प्रसन्न होकर मर्म की बात(ब्रह्मज्ञान) समझा सकें । यदि तूँ दृढ़ता से मेरी बात मानकर अपनी इन्द्रियों की वृत्तियों का मर्दन(दमन) कर अभिमानरूपी मन का मैल धो डालेगा तब अन्तर्मुख होने पर तुझे अमर बनाने वाली सञ्जीविनी बूटी(ब्रह्मज्ञान) प्राप्त हो जायगी ॥४६॥
(क्रमशः)

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