卐 सत्यराम सा 卐
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चंद सूर पावक पवन, पाणी का मत सार ।
धरती अंबर रात दिन, तरुवर फलैं अपार ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमपिता परमेश्वर की आज्ञा मान कर चन्द्रमा, सूर्य, पानी, पवन, आकाश, पृथ्वी, रात, दिन, तरुवर, ये सब ही परमेश्वर की आज्ञानुसार परोपकार करते हैं । इनको कोई स्वार्थ नहीं हैऔर संत भी प्रभु की प्रेरणा को मान कर परोपकार का ही व्रत धारण करते हैं । ऐसे परोपकारियों को ही धन्य हैं ॥
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धरती मत आकाश का, चंद सूर का लेइ ।
दादू पानी पवन का, राम नाम कहि देइ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो साधक की क्षमा रूप गुण को धारण करता है, आकाश की निर्लेपता, चन्द्रमा का शीतलता रूप गुण, सूर्य की तेजस्विता या भक्ति में शूरवीरता, पानी की निर्मलता और पवन का अनाशक्ति आदि भाव, इन सब गुणों को धारण करके, निष्काम भाव से राम - नाम का अखंड जो स्मरण करता है, उसको धन्य है ॥
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कबीर सीतलता तब जानिये, जे समता रहै समाइ ।
पख छाड़ै निरपख रहै, कुशब्द न दूख्या जाइ ॥
कबीर सीतलता भई, पाया ब्रह्म गियान ।
जिहि वैसांदर जग जलै, सो मेरे उदक समान ॥
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धूल धूंकल धरती सहै, बाढ़ सहै बनराइ ।
कुशब्द तो साधू सहै, और से सह्या न जाइ ॥
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दुर्मिला छन्द
धरती धन धीरज धौंस सहै,
नभ गर्ज सहै सब बादर की ।
नित सूर प्रकासत चन्द सुधा,
जल मारुत मत्त समादर की ॥
यह वृक्ष सहे सब बाढ़ रहे,
फल छाँह करे सब आदर की ।
हरि सन्त सहै कड़वे वचना,
सब कान सुने जु निरादर की ॥
(श्री दादूवाणी)
चित्र सौजन्य ~ मुक्ता अरोड़ा स्वरूप निश्चय
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