#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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दिल दरिया में गुसल१ हमारा, ऊजे२ कर चित लाऊं ।
साहिब आगे करूँ बँदगी, बेर बेर बलि जाऊं ॥ ४३ ॥
हृदय - दरिया के नाम - चिन्तन - जल से हमारा स्नान१ होता है । सँयम - लोटा के प्रत्याहार - जल से पँचेन्द्रिय रूप पाँचों (हाथ २ - पैर - मुख) अँगों को धोकर, भगवान् में चित्त लगाते हैं । इस प्रकार हम भगवान के आगे भक्ति करते हैं और बारँबार बलिहारी जाते हैं ।
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दादू पँचों संग संभालूँ सांई, तन मन तब सुख पाऊं ।
प्रेम पियाला पिवजी देवे, कलमा ये लै लाऊं ॥ ४४ ॥
पाँचों ज्ञानेन्द्रियों को भगवत् परायण करके भगवद् भजन करते हैं, तभी परमात्मा हमें अपने प्रेम - रस का प्याला प्रदान करते हैं । उसके प्रताप से हम तन - मन से आनन्दित रहते हैं । हमारा कलमा पढ़ना यही है कि "परब्रह्म में ही अपनी वृत्ति लगायें ।"
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शोभा कारण सब करैं, रोजा बाँग नमाज ।
मुवा न एकौ आह सौं, जे तुझ साहिब सेती काज ॥ ४५ ॥
सभी प्रशँसा के लिए रोजा करते हैं । नमाज के समय आवाज लगाते हैं । यदि ऐसा नहीं हो और तुझे परमात्मा से मिलने का ही काम हो तो, एक आवाज से ही क्यों न मरा । कारण, इतने जोर से बोल ने वाला वियोगी तो प्रेम पात्र के बिना जीवित रह नहीं सकता ।
(क्रमशः)
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