रविवार, 6 अगस्त 2017

= बावनी(ग्रन्थ १३/२५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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*घघा घटमैं औ घट कहिये,*
*घटही मांहि घाटकौं लहिये ।*
*घाट मांहि घनघुरे निसानी,*
*घंटा घोर सुनैं को कानी ॥२५॥*
*(घ)* 'घ' से यह मानना चाहिये कि प्राणी के इस शरीर में ही परमात्मा कहीं न कहीं टेढ़ा-मेढ़ा पड़ा हुआ है । अतः इस परमात्मा को अपने शरीर ही प्राप्त किया जा सकता है । जब उसकी प्राप्ति के योगी साधना करने लगेगा तो धीरे-धीरे उसे अपने शरीर में बादलों की गड़ागड़ाहट, या घोर(भयंकर) घण्टा का शब्द(अनाहत नाद) सुनायी देगा । इससे उसे अपने इन्द्रियनिग्रह में अत्यधिक सहायता मिलेगी ॥२५॥
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*नना नेह निरंजन लागै,*
*नारी तजै नरकतैं भागै ।*
*निशदिन नैनहु नींद न आवै,*
*नर तब हीनारायण पावै ॥२६॥*
*(ड:)* 'ड:' अक्षर हमको यह सिखाता है कि साधक को परब्रह्म
परमात्मा से ही स्नेह करना चाहिये । जब ऐसा साधक स्त्रीसंग बिलकुल छोड़ दे, नरक की ओर ले जाने वाले क्षुद्र सुखों को त्याग दे, और ईश्वर की प्रेमा भक्ति में ऐसा लीन हो जाय कि उसे दिन-रात में कभी नींद भी न आवे तब(ऐसी अवस्था प्राप्त होने पर) वह नारायण(परमात्मा) को पा सकता है ॥२६॥
(क्रमशः)

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