🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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यय्या याकौ याही पावै, याहि पकरि याकै घर ल्यावै ।
याकौ याही बेरी होई, याकौ इहै मित्र है सोई ॥४७॥
(य) 'य' अक्षर का विचार यों समझना चाहिये--इस(परमात्मा) को यही(जीवात्मा ही) प्राप्त कर सकता है । यह परमात्मा ही इसको पकड़कर स्वरूप में स्थित करा सकता है; क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है, और आत्मा ही आत्मा का शत्रु ॥४७॥
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रर्रा रती रती समुझाय, रे रे रंक सुमरि लै राया ।
रमित राम रह्या भरपुरा, राखि रिदे प्रण छाडि न सूरा ॥४८॥
(र) 'र'कार संसार में फँसे प्राणी को अधिक से अधिक बार सूक्ष्मता से समझता है कि, रे तत्वज्ञान की पूँजी से विहीन दरिद्र ! तूँ उस घट-घट व्यापक जगन्नियन्ता परमात्मा, जो हर तरह से भरा पूरा है(अतः तेरी सब इच्छाओं पूर्ण कर सकता है), के चिन्तन में ध्यान लगा और इस निश्चय से न डिग । क्योंकि वीर लोग अपने एक बार किये प्रण(दृढ़ निश्चय) से
डिगा नहीं करते ॥४८॥
(क्रमशः)
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