#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू शब्द बाण गुरु साध के, दूर दिसन्तरि जाइ ।*
*जिहि लागे सो ऊबरे, सूते लिये जगाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**गुरु-शिष्य निदान निर्णय का अंग ५**
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निवाण१ नैण२ मटुकी मुकुर, सजल सूर प्रतिबिम्ब ।
रज्जब कफ३ करुणा४ किये, जागे तहाँ विलम्ब ॥२५॥
जलाशय१ तथा मटकी में पानी, और शीशा में शुद्ध चमक हो तो ही सूर्य का प्रतिबिम्ब पड़ता है किन्तु जहाँ नेत्रों के आडा हाथ३ लगादे वहाँ प्रतिबिम्ब उठने में देर लगती है, वैसे ही गुरु के द्वारा अन्त करण२ में श्रद्धा हो तो ज्ञान जगता है किन्तु जहाँ गुरु उपदेश धारण करने में दुख४ माने वहाँ ज्ञान जगने में देरी होती है ।
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अनिल१ आगि आनन२ अनंत, पै गर३ हि न कंचन कान ।
रज्जब सोनी सद्गुरु, वज्र वारि विधि बान ॥२६॥
वायु१ अग्नि और मुख२ अनंत हैं किन्तु स्वर्णकार के मुख की वायु और अग्नि से ही सुवर्ण गलता है अन्य किसी से नहीं गलता३, सोनी वज्र के समान कठोर सोना को जल के समान बना देता है, वैसे ही गुरु के मुख की वायु द्वारा बने शब्दों का ज्ञानाग्नि कान के द्वारा प्राणी के अन्त:करण में जाता है तब अज्ञान नष्ट होकर अन्त:करण जल के समान सबके लिये सम हो जाता है ।
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सब गुरु तीरंदाज है, सेवक मन नीशाण ।
रज्जब गुरु कमनैत सो, जा का बैठा बाण ॥ २७ ॥
२७-३० में कहते हैं, जो शिष्य का उद्धार कर दे वही गुरु है - सभी गुरु बाण चलाने वालों के समान हैं और सेवकों का मन लक्ष्य है, किन्तु जिसका बाण लक्ष्य को ठीक बेधता है, वही अच्छा कमान चलाने वाला होता है । वैसे ही जिसका ज्ञान अज्ञान को नष्ट करदे वही गुरु श्रेष्ठ माना जाता है ।
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सेवक मन मिहरी१ भया, मर्द मिले गुरु आय ।
रज्जब साबित३ सो सही२, जा सौं फल रह जाय ॥२८ ॥
सेवक का मन नारी१ के समान है, गुरु मर्द के समान है, जिस मर्द से नारी में गर्भ रूप फल रह जाता है, वही मर्द ठीक२ माना जाता है । वैसे ही जिस गुरु से ज्ञान हो जाता है, वही पूरा३ गुरु माना जाता है ।
(क्रमशः)
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