रविवार, 6 अगस्त 2017

= साँच का अंग =(१३/७-९)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*साँच का अंग १३*
.
दादू मुई मार मानुष घणे, ते प्रत्यक्ष जम काल । 
महर दया नहिं सिंह दिल, कूकर काग सियाल ॥ ७ ॥ 
मृतकवत् कबूतर आदि गरीब प्राणियों को मारने वाले मनुष्य बहुत हैं, वे प्रत्यक्ष ही मृत्यु और काल के समान हैं । जैसे सिंह, कुत्ते, काक और सियार के मन में दया नहीं होती वैसे ही उनके मन में भी दया नहीं होती । 
माँस अहारी मद पिवे, विषय विकारी सोइ । 
दादू आत्मराम बिन, दया कहां थीँ होइ ॥ ८ ॥ 
जो माँसाहार और मदिरा पान करते हैं, वे विषय विकारों में फंसे रहते हैं । सत्संगादि के बिना, "सभी आत्मा एक है और राम सब में व्यापक है" ऐसा ज्ञान नहीं होने से उनके हृदय में दया कहां से आयेगी ?
लँगर१ लोग लोभ सौं लागैं, बोलैं सदा उन्हीं की भीर । 
जोर२ जुल्म३ बीच४ बटपारे५, आदि अंत उनहीं सौं सीर ॥ ९ ॥ 
निर्लज्ज उद्धत१ मनुष्य भी लोभ वश सदा माँसाहारियों की ही पक्ष करते हैं और बलात्कार२, अत्याचार३, भेदनीति४, बटमारी५ करने वाले भी आदि अन्त तक उन्हीं से मूल रखते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें