सोमवार, 14 अगस्त 2017

= १९० =

卐 सत्यराम सा 卐
*साहिब सौं साचा नहीं, यहु मन झूठा होइ ।*
*दादू झूठे बहुत हैं, साचा विरला कोइ ॥* 
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साभार ~ Anand Nareliya
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पहले से तैयार की गई प्रार्थना झूठी और नकली प्रार्थना है; यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है एक निर्धारित विधि से तैयार संस्कारित प्रार्थना, प्रार्थना ही नहीं है उसके बाबत यह पूरी तौर से निश्चित रूप से कहा जा सकता है एक असंस्कारित, सहज स्वाभाविक भाव भरी मुद्रा और कुछ भी नहीं, एक प्रार्थना ही है...
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कभी तुम बहुत उदासी का अनुभव कर सकते हो, क्योंकि उदासी परमात्मा से ही सम्बंधित है उदासी भी दिव्य होती है यहां हमेशा प्रसन्न रहना भी कोई जरूरी नहीं है तब यह उदासी ही तुम्हारी प्रार्थना है तब तुम अपने हृदय को रोने और बिलखने दो, और आंखों को आंसू बरसाने दो तब इस उदासी को ही परमात्मा की अर्पित कर दो। वहां तुम्हारे हृदय में जो कुछ भी हो, उसे ही उन दिव्य चरणों में अर्पित कर दो—वह प्रसन्नता हो अथवा उदासी, और कभी—कभी वह क्रोध या आक्रोश भी हो सकता है
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जब कभी कोई परमात्मा से नाराज भी हो सकता है यदि तुम परमात्मा से नाराज नहीं हो सकते, तो तुमने प्रेम को जाना ही नहीं जब कभी कोई वास्तव में एक गहरे उन्माद में हो सकता है तब अपने क्रोध को ही अपनी प्रार्थना बन जाने दो परमात्मा से लड़ो—वह तुम्हारा है और तुम उसके हो, और प्रेम कोई औपचारिकता नहीं जानता प्रेम में सभी तरह के संघर्ष बने रह सकते हैं यदि उसमें लड़ाई और संघर्ष का अस्तित्व न हो, तब वह प्रेम है ही नहीं इसलिए जब कभी तुम्हें प्रार्थना करने जैसा कुछ भी अनुभव न हो, तो तुम उसे ही अपनी प्रार्थना बना लो
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तुम परमात्मा से कहो—‘जरा ठहरो ! देखो, मेरा मूड ठीक नहीं है, और तुम जिस तरह से यह सब कुछ कर रहे हो, यह कृत्य तुम्हारी प्रार्थना करने योग्य नहीं है।’ लेकिन तुम इसे अपने हृदय का सहज स्वाभाविक भावोद्वेग बनने दो परमात्मा के साथ कभी भी अप्रामाणिक बनकर मत रहो, क्योंकि यह तरीका उसके साथ अस्तित्व में बने रहने का नहीं है यदि तुम परमात्मा के साथ ईमानदार नहीं हो—यदि गहरे में तो तुम शिकायत कर रहे हो और ऊपर ही ऊपर प्रार्थना कर रहे हो? तब परमात्मा तुम्हारी शिकायत की ओर ही देखेगा, प्रार्थना की ओर नहीं तुम झूठे बन जाओगे वह सीधे तुम्हारे हृदय में देख सकता है तुम किसे धोखा देने अभी यह क्षण समय का भाग नहीं है?
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तुम्हारे चेहरे की मुस्कान परमात्मा को धोखा नहीं दे सकती, तुम्हारा वास्तविक सत्य वह जान ही लेगा केवल वही तुम्हारे सत्य को जान सकता है, उसके सामने झूठ ठहरता ही नहीं इसलिए वहां सत्य को ही बने रहने दो तुम उसे केवल अपना सत्य ही भेंट करो और कहो— आज मैं तुमसे नाराज हूं तुम्हारे इस संसार से नाराज हूं तुम्हारे द्वारा दिए इस जीवन से नाराज हूं मैं तुमसे घृणा करता हूं और मैं तुम्हारी प्रार्थना भी नहीं कर सकता, इसलिए तुम्हें आज मेरी प्रार्थना के बिना ही रहना होगा मैंने अब तक बहुत सहा है, अब तुम सहो उससे इसी तरह बात करो जैसे कोई अपने प्रेमी या मित्र या मां के साथ बातचीत करता है...
osho 
आनंद योग–(दि बिलिव्ड)–(प्रवचन–06)

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