मंगलवार, 22 अगस्त 2017

= बावनी(ग्रन्थ १३/५३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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*शश्शा साहिब सेवक संगा,*
*शुरति करै जब सिमटै अंगा ।*
*शो रस पिस्याहोइ ऐसा,*
*शंकर शेख रसिक है जैसा ॥५३॥*
*(श)*  सेवक को लययोग से अपने चित्त तथा इन्द्रियों की वृत्ति को समेट कर स्वामी(ब्रह्म) के आकार को धारण करने की चेष्टा करते रहना चाहिए । साधक उस ज्ञानामृत रस का इस तरह पान करे जैसे शंकर तथा शेष नाग ने किया था(शिव तथा शेषनाग की हरिभक्तों में श्रेष्ठता प्रसिद्ध है ।) ॥५३॥
*हह्हा हौणहार परि राखै,*
*हरखि हरखि करि हरिरस चाखै ।*
*हाल हाल होइ हेत लगावै,*
*हसि हसि हलैं हंस मिलावै ॥५४॥* 
*(ह)* साधक को अपने इस नश्वर देह की रक्षा का भार अपने प्रारब्ध पर छोड़ मुदित हो, निरन्तर हरिनामामृत का पान करना चाहिये । वह प्रतिक्षण उस भगवान् में चित्तवृत्ति लगाये रख कर भक्तिमग्न हो बेसुध होता रहे । और प्रसन्नतापूर्वक प्राणायाम-क्रिया द्वारा 'हंस' की साधना करे ॥५४॥
(क्रमशः)

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