卐 सत्यराम सा 卐
*कोमल कठिन, कठिन है कोमल, मूरख मर्म न बूझै ।*
*आदि रु अंत विचार कर, दादू सब कुछ सूझै ॥*
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साभार ~ हमारा पन्ना
*पलायन और जिम्मेदारी*
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आस्ट्रेलिया में होबर्ट के समीप स्थित जंगल में भयंकर अग्निकाँड। उसमें भस्म होने वाले प्राणियों की संख्या को कोई अनुमान ही नहीं लगा पाया। आँधी भी ११४ किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चल रही थी।
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लोग भाग कर अपनी जान नहीं बचा पा रहे थे। आस पास के बसे नगरों की ओर अग्नि दौड़ती जा रही थी। वहाँ के जेलखानों के फाटक जलकर राख हो गये। यदि कैदी चाहते तो आसानी से फरार हो सकते थे।
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लेकिन उनकी दृष्टि में शासकीय भवन राष्ट्रिय सम्पत्ति था। और राष्ट्रिय सम्पत्ति की सुरक्षा प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक कर्त्तव्य है। निरन्तर 36 घंटों तक कैदी आग बुझाने कार्यों में व्यस्त रहे। अपने प्राणों को संकट में डालकर भी सरकारी भवनों की सुरक्षा का कार्य उन्होंने किया।
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समय पर कितनी ही दमकलें भी आ गईं। आग पर काबू पा लिया गया। सभी कैदी अपनी अपनी कोठरियों में वापिस आ गये। जेलर द्वारा उनकी उपस्थिति ली गई। सभी कैदी यथावत थे। जेलर को बड़ा आश्चर्य हुआ वह कुछ कैदियों से पूँछ बैठे- “क्या आप लोग जेल से मुक्त नहीं होना चाहते? आप सबको कितना स्वर्णिम अवसर जेल छोड़कर भागने का था, फिर भी आप नहीं भागे?”
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“महोदय! बन्धन में रहना तो कोई व्यक्ति नहीं चाहता। फिर उस पर हम लोग कैदी हैं। न्यायालय द्वारा जितने समय का कारावास दण्ड दिया गया है उससे पूर्व भागना नियमों को तोड़ना है। हाँ यदि शासन द्वारा हमारे दण्ड को कम कर दिया जाता या रिहा कर दिया जाता तब तो चले भी जाते। हमें तो जेल में रहकर अपने अपराधों के पश्चाताप करने का अवसर दिया गया है।” कैदियों का जेलर को उत्तर था।
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‘कहानी - अखण्ड ज्योति,
नवम्बर-१९७१ से साभार’
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“इस कहानी में दो सबक हैं एक तो अपने कमाए दुःख से भागो नहीं उन्हें पश्चाताप पूर्वक भोग कर नष्ट होने का अवसर दो...।
दूसरा सबक जो समाज के सर्वजनिक सम्पत्ति के प्रति नागरिक कर्तव्य को दर्शाता है। आज के भारतीय समाज को इससे सीखना चाहिए जो सरकारी सम्पत्ति को गुस्सा उतारने का निशाना बनाता रहता हैं... वह इस बात को सिरे से ही भूल जाता है कि वह सारी सम्पत्ति आपकी ही मेहनत की कमाई से कटे टैक्स से बनाई गई है और उसको होने वाला नुकसान हर बार देश को कुछ कदम पीछे ले जाता है...क्युँकि जो पैसे देश को कुछ कदम आगे ले जाने में लगते वे आपके द्वारा नष्ट की गई सम्पत्ति और व्यवस्था को दुबारा पटरी पर लाने में खर्च की जानी पडती है। गुस्सैल भीड का हिस्सा बन कर मूर्खतापूर्ण हरकतों में शामिल होने से पहले एक बार विचार कर लें क्या एक नुकसान को दूसरे नुकसान से भरा जा सकता है॥”
‘हमारा पन्ना’
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