शनिवार, 12 अगस्त 2017

= बावनी(ग्रन्थ १३/३३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बावनी(ग्रन्थ १३) =*
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*ठठा ठगनीकौ मति घीजै,*
*ठगै फरीकै तबका कीजै ।*
*ठौर छोडि जिनि तकै पसारा,*
*ठगनी पैठि करै घट छारा ॥३३॥*
*(ठ)* ठ कहता है- सन्तों को माया ठगिनी का किंचित भी विश्वास नहीं करना चाहिये । वह धोखा देकर ठग ही लेगी तो बाद में उसका कोई क्या कर लेगा ! जिस किसी साधक ने ईश्वर में दृढ़ निश्चय छोड़कर संसार(मायाप्रपन्च) की ओर ललचायी नजर(वासना) से देखा, उस विषयलोलुप प्राणी के ह्रदय में बैठकर इस माया-पिशाची ने उसका शरीर भस्मीभूत कर डाला ॥३३॥
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*डडा डारि देह डर सबही,*
*झोरि पकरि झिगै नही कबहीं ।*
*डंड कमंडल डिढ करि राखी,*
*डेरै गयै सु बोले साखी ॥३४॥*
*(ड)* शरीर को अवलम्ब मानकर सभी प्रकार के भय का त्यागकर साधक को गुरुज्ञानरूपी डोरी का सहारा पकड़ कर अपने लक्ष्य पर डटे रहना चाहिये । उससे कभी च्युत नहीं होना चाहिए । अपने दण्ड-कमण्डलु(ज्ञान-ध्यान के साधन या साधु का बाना) दृढ़ता से पकडे रहना चाहिये । उसे कोई न ले ले । अपने मुकाम(लक्ष्य स्थान, मोक्षवस्था) पर पहुंचने वाले(सन्त) इस में प्रमाण हैं । अर्थात् ज्ञानी भी वही उपदेश कहते हैं जो हम कह रहे हैं ॥३४॥
(क्रमशः)

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