मंगलवार, 19 सितंबर 2017

= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६/६-दो.,५-त्रि.) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*
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*= दोहा =*
*मनसा बाचा कर्मना, सब ही सौं निर्दोष ।*
*क्षमा दया जिनके हृदै, लीयें सत सन्तोष ॥६॥*
जो मन, वचन, कर्म से काम-क्रोध-लोभ इन तीनों दोषों से रहित है, जिसके हृदय में सभी प्राणियों के प्रति क्षमा व दया का ही भाव सदा रहता है, जिसे किसी प्रकार की तृष्णा नही सताती, अपितु वह निरन्तर संतोष वृत्ति धारण किये रहता है, ऐसे ही सद्गुरु का शिष्य बनना चाहिये ॥६॥
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*= त्रिभंगी =*
*तौ सत सन्तोसं है निर्दोसं,*
*कतुहैं न रोसं सब पोसं ।*
*पुनि अन्तह कोसं निर्मल चोखं,*
*नाँहीं धोखं गन सोसं ॥*
*तिंहीं सम सरि जोखं कोइ न होसं,*
*जीवन मोखं दरसाशी ।*
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अविनाशी ॥५॥*
मेरे सद्गुरु(श्रीदादूजी महाराज) सत्यवादी हैं, जो मिले उसी में सन्तुष्ट रहते हैं, किसी पर क्रोध नहीं करते, अपने सभी शिष्यों, भक्तों भावुक-जनों के आश्रयदाता हैं,
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उनका अन्तःकरण निर्विकार है, अतएव वे चोखे(कसोटी पर चढ़े, परखे हुए सोने के समान उत्तम ) हैं, उनमें अन्य कपटी साधुओं की तरह किसी प्रकार का आडम्बर या झूठी दिखावट न होने से उनसे किसी को भी कोई धोखा नहीं हो सकता,
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उनके सभी सत्त्व आदि गुण निःशेष हो चुके हैं अर्थात् वे त्रिगुणातीत हैं । वे आवेश (मन, इन्द्रियों के आवेग) का समय उपस्थित होने पर भी शान्त और समवृत्ति से रहनेवाले हैं, उनकी कोई हविश (वासना) बाक़ी नहीं रह गयी है, वे ज्ञानोपदेश से जीवन्मुक्ति(निर्वाण) का साक्षात्कार करानेवाले हैं ।
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उन्होंने कृपापूर्वक मेरे पास आकर मुझे राममन्त्र का उपदेश दे, मुझको नित्य शुद्ध आनन्दमय ब्रह्म का बोध करा दिया ॥५॥
(क्रमशः)

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