शनिवार, 30 सितंबर 2017

= साँच का अंग =(१३/१५१-३)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*साँच का अंग १३* 
अनकीया लागे नहीं, कीया लागे आइ ।
साहिब के दर न्याय है, जे कुछ राम रजाइ ॥१५१॥
बिना पाप - कर्म करे पाप नहीं लगता, करने पर ही लगता है । परमात्मा के दरबार में न्याय होता है । राम जो कुछ भी हमारे लिये सुख दु:ख की आज्ञा देते हैं, वह हमारे कर्मानुसार ही देते हैं ।
*आत्मार्थी भेष*
सोइ जन साधू सिद्ध सो, सोइ सतवादी शूर ।
सोइ मुनिवर दादू बड़े, सन्मुख रहनि हजूर ॥१५२॥
१५२ - १५६ में कहते हैं - जो भगवान् में रत हैं, उन्हीं के भक्त - सँतादि भेष उत्तम हैं - वही भक्त, सँत, सिद्ध, सत्यवादी, वीर, मुनिवर और महान् है, जिसकी वृत्ति सदा नाम - चिन्तनादि द्वारा परमात्मा के सन्मुख स्थिर रहती है ।
सोइ जन सांचे सो सती, साधक सोइ सुजान । 
सोइ ज्ञानी, सोइ पँडिता, जे राते भगवान ॥१५३॥
वही सच्चा मानव, सत्य का धारण करने वाला सती, साधक, चतुर, ज्ञानी और पँडित है जो भगवान् के वास्तव स्वरूप में रत है । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें