शनिवार, 30 सितंबर 2017

= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७- दो.-६/गी.-५) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७) =*
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*= दोहा =*
*सुन्दर सद्गुरु यौं कहै, याही निश्चय आंनि ।*
*जो कुछ सुनिये देखिये, सर्व स्वप्न करि जांनि ॥६॥*
सद्गुरु अपने शिष्य को एक ही बात हर तरह से समझाते हैं कि हे शिष्य ! तू इस संसार के व्यवहार को स्वप्न के समान(मिथ्या) समझ ले(तो इससे होने वाले तेरे त्रिविध ताप, दुःख स्वतः ही नष्ट हो जायेंगे) ॥६॥
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*= गीतक =*
*यह स्वपन तुल्य दिखाइये जे,*
*स्वर्ग नरक उभै कहैं ।*
*सुख दुःख हर्ष विषाद पुनि,*
*मानापमान सबै गहैं ॥*
*जिनि जाति कुल अरु वर्ण आश्रम,*
*कहे मिथ्या नांम हैं ।*
*दादू दयाल प्रसिद्ध सद्गुरु,*
*ताहि मोर प्रनांम हैं ॥५॥*
जिस सद्गुरु ने ज्ञानोपदेश द्वारा मुझे इस संसार की वस्तुस्थिति(यथार्थ रूप) समझा दी कि यह संसार स्वप्न(में देखि वस्तु) की तरह मिथ्या है, ये स्वर्ग-नरक के सभी सुख-दुःख अशाश्वत(नश्वर) हैं; अनित्य हैं,(अतः उनकी प्राप्ति या नाश के लिये वेद के कर्मकाण्ड के पीछे दौड़ने की कुछ भी जरुरत नहीं है) ;
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इसी तरह संसार में रोज-रोज मिलने वाले सुख-दुःख हर्ष-विषाद, जय-पराजय से उद्भूत मान-अपमान के लिए भी परेशान(चिन्तित) होने की जरूरत नहीं; क्योंकि ये सब सापेक्ष हैं अनित्य हैं, - मिथ्या हैं । 
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साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट समझा दिया किब्रह्मसाक्षात्कार के लिये जाति-कुल-वर्णआश्रम आदि की उच्चता या हीनता भी आवश्यक नहीं है(हम ब्राह्मण आदि ऊँची जाति में पैदा होकर ही तत्वज्ञान के अधिकारी हों - यह कुछ भी जरूरी नहिं है) ।
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ऐसे जगत्प्रसिद्ध सद्गुरु श्रीदादूजी महाराज को मेरा बार-बार प्रणाम है ॥५॥
(क्रमशः)

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