🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*
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*= दोहा =*
*भान उदै ज्यौं होत ही, रजनी तम कौ नाश ।*
*सुखदाई सद्गुरु सदा जिन कै हृदै प्रकाश ॥७॥*
जैसे सूर्य के उदय होते ही रात्रि का समय अन्धकार विनष्ट हो जाता है, उसी तरह सबको सदा सुख देनेवाले मेरे सद्गुरु का निर्मल अन्तःकरण निरन्तर ब्रह्मज्ञान की ज्योति से देदीप्यमान रहता है, अतः वे सबको ज्ञानप्रकाश दिखाने वाले हैं ॥७॥
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*= त्रिभंगी =*
*तौ हृदै प्रकासं रटतै स्वासं,*
*भया उजासं तम नासं ।*
*पुनि घर आकासं मध्य निवासं,*
*किया वासं अनयासं ॥*
*सो है निज दासं प्रभु के पासं,*
*करत विलासं गुणगासी ।*
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अविनाशी ॥६॥*
जिस शिष्य को श्रीदयालजी महाराज जैसे मेरे सद्गुरु आकर राममन्त्र के उपदेश द्वारा ब्रह्मतत्व को समझा देते हैं तो उस शिष्य के ह्रदय में भी ज्ञानका प्रकाश जगमगा उठता है ।
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वह निरन्तर श्वास-प्रश्वास के साथ राममन्त्र रटता रहता है, तब उसका अन्तःकरण सात्विक प्रकाश से प्रकाशित हो उठता है और उसकी तामसी वृत्तियों का अन्धकार नष्ट हो जाता है ।
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फिर वह धारणा- ध्यान के द्वारा सहज समाधि के सहारे अनायास ही निराकार ब्रह्म में तन्मय रहने लगता है । उस समय वह अपने प्रभु(सेव्य) के पास दास(सेवक) भाव से उनका गुणगान करता हुआ आनन्दमग्न हो जाता है ।
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सद्गुरु दादूदेव ने मुझे राममन्त्र देकर शाश्वत ब्रह्म का साक्षात्कार करा दिया ॥६॥
(क्रमशः)

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