शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६/९-दो.,८-त्रि.) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷

🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏

🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷

रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*

संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री

साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,

अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज

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*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*

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*= दोहा =* 
*सद्गुरु सुधा समुद्र है, सुधामई है नैंन ।* 
*नख शिख सुधा स्वरूप पुनि,*
*सुधा सु बरखत बैंन ॥९॥* 
हमारे सद्गुरु मानों अमृत के सागर हैं । उनके दिव्य नेत्र अमृत की वर्षा करनेवाले हैं । या यों कहिये कि नख से शिखा पर्यन्त समग्र शरीर ही अमृतमय है । इन सबसे बढकर उनकी वाणी अमृतमयी है ॥९॥  
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*= त्रिभंगी =* 
*तौ जिनकी बांनी अमृत बखांनी,*
*संतनि मांनी सुखदांनी ।* 
*जिनि सुनी करि प्रांनी हृदये आंनी,*
*बुद्धि थिरांनी उनि जांनी ॥* 
*यह अकथ कहांनी प्रगट प्रवांनी,*
*नांहिन छांनी गंगा सी ।* 
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अबिनाशी ॥८॥* 
जिनकी बाणी सबका भला करनेवाले अमृतमय वचन ही बोलती है, उस सुखदायी वाणी को सन्तजन बिना किसी ननु-नच के स्वीकार कर लेते हैं । 
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जिस प्राणी ने भी उस वाणी(के उपदेश) को सुनकर हृदय में धारण कर लिया, उसपर मन टिका लिया, उसपर श्रद्धा-विशवास कर लिया, उसने उस सूक्ष्म तत्व(ब्रह्मतत्व) कोपा लिया - यह निश्चित समझिये ।  
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सद्गुरु की यह वाणी(उपदेश) अन्य साधारण प्राणी द्वारा कहने में कठिन(अकथनीय) है, जब कि इसमें सब कुछ स्पष्ट है, कुछ भी गोपनीय नहीं है, गंगा के समान प्रत्यक्षतः निर्मल व स्वच्छ है । 
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सद्गुरु श्री दादूदयालजी ने मुझ दीन-हीन पर कृपाकर, राममन्त्र का उपदेश दे मुझको उस नित्य निरञ्जन ब्रह्मतत्व का साक्षात्कार करा दिया - यह मेरे लिये कितनी खुशी की बात है, मैं इसका अपने मुख से वर्णन नहीं कर सकता ॥८॥ 
(क्रमशः)

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