#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू एक सौं लैलीन होना, सबै सयानप येह ।*
*सतगुरु साधु कहत हैं, परम तत्त जपि लेह ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**आज्ञाकारी का अंग ८**
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हरि आज्ञा में अणसरे१, गुरु दिनकर२ इकतार३ ।
रज्जब शिष सो किरण सम, सदा सु तिनकी लार ॥५॥
ईश्वर आज्ञा अनुसार१ सूर्य२ निरन्तर३ चलते हैं, सूर्य की किरण भी सूर्य के साथ ही चलती हैं । वैसे ही ईश्वर आज्ञानुसार गुरु चलते हैं, गुरु आज्ञानुसार शिष्य सदा गुरु के साथ रहता है ।
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चंद सूर पाणी पवन, धरती अरु आकाश ।
ये सांई के कहे में, त्यों रज्जब गुरु दास ॥६॥
चन्द्रमा, सूर्य, जल, पृथ्वी और आकाश ये सभी परमात्मा की आज्ञा में चलते हैं । वैसे ही शिष्य गुरुदेव की आज्ञा में चलते हैं ।
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पाणी पवन सूर्य शशि सोधे१,
धन्य धणी४ जिन ये परमोधे ।
चूक२ हि चक३ हि न सीख मँझारी,
जन रज्जब ता पर बलिहारी ॥७॥
जल, वायु, सूर्य, चन्द्रमा, इन सबके व्यवहार हमने अन्वेषण१ करके देखे हैं, ये सब भूल२ कर भी भ्रम३ में नहीं पड़ते, निरंतर ईश्वर की शिक्षा रूप आज्ञा में ही चलते हैं । जिनने इनको उपदेश दिया है, वे स्वामी धन्य४ हैं मैं उनकी बलिहारी जाता हूँ ।
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ज्यों हलवाई की हाट तज, माँखी कहीं न जाय ।
त्यों रज्जब गुरु शिष बँधे, उडहि न रहे उडाय ॥८॥
जैसे हलवाई की हाट की मक्खयों को उडा उडा कर थक जाते हैं किन्तु हाट को छोड कर कहीं भी नहीं जातीं । वैसे ही शिष्य गुरु की आज्ञा में बँधे रहते हैं, हटाने पर भी नहीं हटते ।
(क्रमशः)

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