मंगलवार, 19 सितंबर 2017

= ५६ =

卐 सत्यराम सा 卐
*प्राण कवल मुख राम कहि, मन पवना मुख राम ।*
*दादू सुरति मुख राम कहि, ब्रह्म शून्य निज ठाम ॥* 
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साभार : @गीता गुरूकुल ~ 
भगवन्नाम : नाम-महिमा -८-
जैसे आग में काठ रखो तो अंगार बनकर चमकने लगेगा । काला-से-काला कोयला आग में रख दो तो वह भी चमकने लगेगा । पत्थर का टुकड़ा आग में रख दो, वह भी चमकने लगेगा । कुछ भी कंकर, ठीकरी रख दो, वे सब-के-सब चमकने लगेंगे । यह क्या है ? यह आग का प्रभाव है । जब एक भौतिक वस्तु में भी इतनी सामर्थ्य है कि वह काठ, पत्थर आदि को चमका दे तो फिर यह तो भगवान्‌ का नाम है । यह भौतिक नहीं है, यह तो दिव्य है । यह नाम महाराज चेतना को चेत करा देते हैं कि तू इधर खयाल कर‒‘नाम चेतन कूं, चेत भाई नाम ते चित्त चौथे मिलाई ।’
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आप लोगों में भी कोई नाम लेनेवाला हो तो मैं मानता हूँ कि आपके ऐसा होता होगा । आप सोते रहते हैं, गाढ़ नींद में तो राम.....ऐसी आवाज आती है, आपको जगा देती है कि अरे ! नाम लो, कैसे सोता है ? इस प्रकार नाम महाराज खुद जगाते हैं । नाम महाराज खुद चेत कराते हैं । स्वयं भगवान् चेत कराते हैं ।
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एक बड़े विरक्त सन्त थे । वे नाम जपते थे । कौड़ी-पैसा लेते नहीं थे, रखते नहीं थे, छूते ही नहीं थे । वे कहते थे कि बहुत बार ऐसा होता है, जब मैं सोता हूँ तो मुझे ऐसे प्यार से उठाते हैं, जैसे कोई माँ उठाती हो । गरदन के नीचे हाथ देकर चट उठा देते हैं । मेरे को पता ही नहीं लगता कि न जाने किसने मेरे को बैठा दिया । तो नाम महाराज भगवान्‌ की याद दिलाते हैं । मैं खुद अनुमान करता हूँ, आप में भी कोई नाम-प्रेमी है, उसके भी ऐसा होता होगा । 
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इसमें कोई गृहस्थ का कारण नहीं है, कोई साधु का कारण नहीं है, कोई भाई का कारण नहीं, कोई बहन का कारण नहीं । कोई भी भाई-बहिन इसका जप करेंगे, उसके भी यह बात हो जायगी । कभी भगवान्‌ की आवाज आ जाती है । आप कभी पाठ, जप करते हैं । भगवान्‌ के भजन में लगे हैं, मन में जपने की लगन है और आपको कहीं नींद आने लगेगी तो किवाड़ जोर से पड़ाक से पटकेगा, जैसे कोई हवा आ गयी हो अथवा कोई हल्ला करेगा तो आपकी नींद खुल जायगी । कोई अचानक ऐसा शब्द होगा तो चट नींद खुल जायगी । यह तो नाम महाराज चेताते हैं, भगवान् चेत कराते हैं कि सोते कैसे हो ? नाम जपते हो कि नींद ले रहे हो ? भगवान् बड़ी भारी मेहनत करके, आपके ऊपर कृपा करके आपकी निगरानी रखते हैं, आप शरण हो तो जाओ ।
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तुलसीदासजी महाराज कहते हैं‒‘बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु’ अनेक जन्मों की बिगड़ी हुई बात, आज सुधर जाय और आज भी अभी-अभी इसी क्षण, देरी का काम नहीं, क्योंकि ‘होहि राम को नाम जपु’ तुम रामजी के हो करके अर्थात् मैं रामजी का हूँ और रामजी मेरे हैं‒ऐसा सम्बन्ध जोड़ करके नाम जपो । 
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पर इसमें एक शर्त है‒‘एक बानि करुनानिधान की । सो प्रिय जाकें गति न आन की ॥’ संसार में जितने कुटुम्बी हैं, उनमें मेरा कोई नहीं है । न धन-सम्पत्ति मेरी है और न कुटुम्ब-परिवार ही मेरा है अर्थात् इनका सहारा न हो । ‘अनन्यचेताः सततम्’, ‘अनन्याश्चिन्तयन्तो माम्’ केवल भगवान् ही मेरे हैं । मैं औरों का नहीं हूँ तथा मेरा और कोई नहीं है‒ऐसा अपनापन करके साथ में फिर नाम जपो तो उस नाम का भगवान्‌पर असर होता है । 
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परन्तु कइयों से सम्बन्ध रखते हैं, धन-परिवार से सम्बन्ध रखते हैं और नाम लेते हैं तो नाम न लेने की अपेक्षा लेना तो श्रेष्ठ है ही और जितना नाम लेता है, उतना तो लाभ होगा ही; परन्तु वह लाभ नहीं होगा, जो लाभ सच्चे हृदय से अपना सम्बन्ध परमात्मा के साथ जोड़कर फिर नाम लेनेवाले को होता है ।
जय श्री कृष्ण, 'भगवन्नाम' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 417, पृष्ठ-संख्या- १३-१५, गीताप्रेस गोरखपुर
ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

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