#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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सांच न सूझे जब लगैं, तब लग लोचन नाँहिं ।
दादू निरबंध छाड़कर, बँध्या द्वै पख माँहिं ॥१४८॥
जब तक सत्य परब्रह्म का ज्ञान नहीं होता तब तक ज्ञान - नेत्र खुले नहीं माने जाते । ज्ञान - नेत्र न होने के कारण ही नाम - रूपादि बन्धन से रहित परब्रह्म को त्याग, द्वैतवाद की पक्षपातों में पड़कर प्राणी जन्मादि क्लेश भोगता है ।
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एक सांच सौं गहगही१, जीवन मरण निबाहि ।
दादू दुखिया राम बिन, भावै तीधर२ जाहि ॥१४९॥
सत्य परब्रह्म के चिन्तन से प्रफुल्लित१ होकर जीवन से मरण पर्यन्त परब्रह्म की भक्ति को ही निभावे । कारण, निरंजन राम की भक्ति बिना प्राणी चाहे कहीं२ भी जाय, दु:खी ही रहता है ।
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*चेतावनी*
दादू छाने छाने कीजिये, चौड़े परकट होइ ।
दादू पैस१ पयाल२ में, बुरा करे जनि कोइ ॥१५०॥
१४८ - १४९ में सत्य चेतावनी दे रहे हैं - जो सँसारी जीवों से छिप २ कर भी चोरी व्यभिचारादि पाप किये जाते हैं, वे भी प्रकट हो ही जाते हैं । अत: कोई पाताल२ में प्रवेश१ करके भी बुरा काम न करें ।
(क्रमशः)

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