गुरुवार, 21 सितंबर 2017

= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६/८-दो.,७-त्रि.) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*
.
*= दोहा =*
*सद्गुरु प्रगटे जगत मैं, मानहुँ पूरण चन्द ॥*
*घट माँहि घट सौं पृथक, लिप्त न कोऊ द्वन्द ॥८॥*
मेरे सद्गुरु इस जगत् में पूर्ण चन्द्रमा के समान(निर्दोष, ज्योतिर्मय) अवतरित हुए हैं वे इस पच्ञभौतिक शरीर में रहते हुए भी जीवात्मा के रूप में इससे अलग हैं और जल में पद्मपत्र की तरह वे इस संसार से निर्लिप्त हैं, अतः उन्हें पञ्च-भूतों से उत्पन्न द्वन्द्व(भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, आधि-व्याधि, सुख-दुःख आदि) बिल्कुल नहीं सताते ॥८॥
.
*= त्रिभंगी =*
*तौ लिप्त न द्वन्द्व पूरण चन्द,*
*नित्यानंदं निस्पंदं ।*
*सो गुरु गोविदं एक पसंदं,*
*गावत छंदं सुखकंदं ॥*
*जे हैं मति मंदं बीघे फंदं,*
*बै सब रिंदं मुरझासी ।*
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अबिनाशी ॥७॥*
जो इस संसार में लिप्त नहीं होता, जो पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह निष्कलंक(निर्दोष) हैं, जो नित्यानन्द में निमग्न रहता हुआ सदा निश्चेष्ट(शान्तवृत्ति) रहता है, वही सच्चा गुरु है ।
.
वह उस अनन्त सुखराशि ब्रह्म के गुणगान में ही अहिर्निश डूबा रहता है ।
.
बाक़ी सब लोग जो बुद्धि के हीन, साधुवेषधारी, संसार के मायाजाल में फँसे हैं, धार्मिक बन्धनों को न माननेवाले स्वेच्छाचारि मनमौजी कपटी साधु अन्त में दुःखाभितप्त होकर एक दिन विनष्ट हो जायँगे ।
.
(श्रीसुन्दरदास जी कहते हैं --) हमें तो सद्गुरु श्रीदयालजी महाराज ने कहा राममन्त्र के उपदेश द्वारा ब्रह्मतत्व का साक्षात्कार करा(कर इस दुःखमय स्थिति से ऊपर उठा) दिया है ॥७॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें