#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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जे कोइ ठेले सांच को, तो सांचा रहे समाइ ।
कौड़ी बर क्यों दीजिये, रत्न अमोक जाइ ॥१३९॥
यदि कोई सँसारी जन परब्रह्म की प्राप्ति
विषयक सत्य उपदेश को धारण न करे तो सत्योपदेश देने वाला सच्चा महानुभाव उन्हें
उपदेश क्यों दे ? उसे तो चाहिये - सत्य परब्रह्म में ही अपने वृत्ति लीन करके समाहित रहे ।
धारण न करने वालों को उपदेश देने से, उनसे केवल भोग ही
प्राप्त होते हैं । अत: भोग रूप कौड़ी के बदले अपने अमूल्य श्वास - रत्न व्यर्थ ही
जाते हैं ।
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सांचे साहिब को मिले,
सांचे मारग जाइ ।
सांचे सौं सांचा भया,
तब सांचे लिये बुलाइ ॥१४०॥
सच्चे साधक भक्ति - ज्ञान - वैराग्यादि सच्चे साधन करते
हैं । सच्चे साधन से जिनका मन जब सच्चा निर्द्वन्द्व हुआ, तब ही सत्य ब्रह्म ने उनके आत्मा को
सँसार से आह्वान किया और वे सत्य परब्रह्म को प्राप्त हो गये ।
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दादू सांचा साहिब सेविये,
सांची सेवा होइ ।
सांचा दर्शन पाइये,
सांचा सेवक सोइ ॥१४१॥
सत्य परब्रह्म की ही भक्ति करो, जब निष्काम भाव से अहँग्रह उपासना रूप
सच्छी भक्ति होती है, तब ही सत्य परब्रह्म का साक्षात्कार
होता है और जो परब्रह्म का साक्षात्कार कर पाता है, वही
सच्चा भक्त कहलाता है ।
(क्रमशः)

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