卐 सत्यराम सा 卐
*दादू अवसर चल गया, बरियां गई बिहाइ ।*
*कर छिटके कहँ पाइये, जन्म अमोलक जाइ ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
जो भी पाने योग्य है, वह जीवन में ही पाया जा सकता है। लोग सोचते हैं कि देह में, जीवन में, संसार में रह कर सत्य को, ब्रह्म को, मुक्ति को कैसे पाया जा सकता है!लेकिन जो जीवन में नहीं पाया जा सकता वह कभी नहीं पाया जा सकता। जीवन अवसर है पाने का, चाहे व्यर्थ को जुटाने में समाप्त कर दें और चाहे सत्य को, ब्रह्म को पाने में लगा दें। जीवन एकदम तटस्थ है, कोई बाधा नहीं देता मनुष्य को; मनुष्य जो चाहे पा ले।
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इसे गहराई से समझ ले मनुष्य कि मृत्यु इस अवसर की समाप्ति है। आखिर मृत्यु का अर्थ क्या है? मृत्यु का अर्थ है कि अब कोई अवसर न बचा। जीवन है अवसर, मृत्यु है अवसर की समाप्ति। मनुष्य समझता है कि जीवन तो है भोग के लिए, फिर जब जीवन रिक्त हो जायेगा तब.....तब योग। मृत्यु है अवसर की समाप्ति; इस अर्थ को ठीक से समझ लें। इसलिए जो भी करना है, वह जीवन में ही करना होगा।
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'जिसको जीवित अवस्था में ही कैवल्य की प्राप्ति हो गई है, वह देहरहित होने पर भी ब्रह्मरूप रहेगा।'
जिसने जीवन में ही अपने स्वरूप को जान लिया है, केवल वो ही, जब देह गिरेगी; तब ब्रह्मरूप रहेगा।
जिसने जीवनपर्यन्त जाना हो कि मैं देह हूं, वह मृत्यु के क्षण मूर्छित हो जायेगा। बेहद थोड़े लोगों की मृत्यु होशपूर्ण होती है। मनुष्य मृत्यु के क्षण होश में नहीं रहता, नहीं तो उसको पिछली मृत्यु का स्मरण रहता। बेहोशी में जो भी घटित होता है, उसका स्मरण नहीँ रहता।
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इसीलिये तो लोगों को ज्ञात नहीं है कि वे बहुत बार जन्मे हैं और बहुत बार मृत्यु घटित हो चुकी है। क्योंकि जब भी मृत्यु घटित हुयी, बेहोशी में ही हुयी। जिसकी मृत्यु बेहोशी में होती है, वह जन्म के क्षण भी बेहोश रहता है। क्योंकि मृत्यु और जन्म एक ही घटना के दो छोर हैं।
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इसीलिये किसी भी मनुष्य को ये ज्ञात नहीं है कि पहले भी उसकी मृत्यु हुयी थी और पहले भी उसका जन्म हुआ था। जन्म की खबर भी मनुष्य दूसरों से पाता है। कोई बताने वाला न हो तो मनुष्य कभी न जान सकेगा कि उसका जन्म हुआ है। अपने जन्म की भी मनुष्य को कोई स्मृति नहीं रहती।

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