#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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सांचे का साहिब धणी,
समर्थ सिरजनहार ।
पाखँड की यहु पृथ्वी,
प्रपँच का सँसार ॥१४२॥
सच्चे भक्त को साथ देने वाला तो एक सँसार का स्रष्टा
समर्थ स्वामी परमात्मा ही है । कारण, यह पृथ्वी तथा सब सँसार ही पाखँड प्रपँच से पूर्ण है । अत: सँसारी लोग
पाखँडी - प्रपँची का ही साथ देते हैं ।
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झूठा परकट, सांचा छाने, तिनकी दादू राम न माने ॥१४३॥
झूठे भक्त तो पाखँड प्रपँच - द्वारा
लोगों में प्रतिष्ठित होकर अति प्रकट रहते हैं और पाखँड प्रपँच से रहित सच्चे भक्त
वर्तमान में छिपे ही रहते हैं किन्तु अति प्रकट होने पर भी पाखँडियों की भक्ति
भगवान् नहीं मानते और छिपे रहने पर भी सच्चे भक्त की भक्ति का सम्मान करते हैं ।
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दादू पाखँड पीव न पाइये, जे अन्तर सांच न होइ ।
ऊपरि तैं क्यों ही रहो, भीतर के मल धोइ ॥१४४॥
यदि हृदय में सच्छी भक्ति नहीं हो तो
पाखँड करके बाहर लोगों को दिखाने वाली भक्ति से भगवान् प्राप्त नहीं होते, बाहर के भक्ति -
चिन्हादि हों या न हों, कैसे भी रह सकते हैं किन्तु हृदय के
मलादि दोष तो अवश्य नष्ट होने ही चाहिये । सच्छी भक्ति द्वारा निष्पाप होने से ही
भगवान् अपनाते हैं ।
(क्रमशः)

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