गुरुवार, 28 सितंबर 2017

= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७- दो.-४/गी.-३) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७) =*
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*= दोहा =*
*सुन्दर सद्गुरु जगत मैं, पर उपगारी होइ ।*
*नीच ऊँच सब ऊधरै, सरनै आवै कोइ ॥४॥*
श्री सुन्दरदासजी कहते हैं कि इस संसार में सद्गुरु ऐसे परोपकारी एवं कृपालु है कि जो भी श्रद्धाभक्तिपूर्वक उनकी शरण में आया, भले ही वह जाति-वर्ण-कुल से हीन हो या उत्तम, सबको इस संसार सागर से पार कर दिया ॥४॥
(१. कसीस करि=वाण विद्यावालों का मुहाविरा है । ‘कशिश’ (= खूब खैंचतान करके) ।
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*= गीतक =*
*जो आइ सरनैं होहि प्रापति,*
*ताप तिन तिन की हरैं ।*
*पुनि फेरि बदलैं घाट उनकी,*
*जीव तैं ब्रह्महिं करैं ॥*
*कछू ऊँच नीच न दृष्टि जिनकै,*
*सकल कौ बिश्रांम हैं ।*
*दादू दयाल प्रसिद्ध सद्गुरु,*
*ताहि मोर प्रनांम हैं ॥३॥*
जो भी जिज्ञासु सद्गुरु की शरण में आ जाते हैं वे उनके तीनों ताप(आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक दुःख) नष्ट कर देते हैं और उनकी चेष्टाएँ(वृत्तियाँ) बदल कर उनको निजस्वरूप में स्थित कर जीव का ब्रह्म से तादात्म्य स्थापित कर देते हैं ।
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जिनकी दृष्टि में न कोई ऊँचा है न कोई नीचा, न को ब्राह्मण है न चाण्डाल, उनकी दृष्टि में सभी बराबर हैं१ । वे सभी का उद्धार करने की भावना रखते हैं । ऐसे सद्गुरुशिरोमणि श्रीदादूजी महाराज को मेरा साष्टांग दण्डवत्-प्रणाम है ॥३॥
{१. तु० - “विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैन श्वपाके च पण्डिताः(ज्ञानिनः) समदर्शिनः” ॥}
(क्रमशः)

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