रविवार, 24 सितंबर 2017

= ६४ =

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू पखा पखी संसार सब, निर्पख विरला कोइ ।*
*सोई निर्पख होइगा, जाके नाम निरंजन होइ ॥* 
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साभार ~ Hansraj Taneja via Prem Arora @ओशो-दर्शन

अष्‍टावक्र महागीता--(भाग-2) प्रवचन--12
वासना संसार है, बोध मुक्‍ति है (पोस्ट 157)

अष्टावक्र कहते हैं. ऐसा देख कर कि अनेक मत हैं, बुद्धिमान व्यक्ति मतों को ही छोड़ देता है, मतों की झंझट में ही नहीं पड़ता। ऐसा देख कर कि अनेक शास्त्र हैं—कौन ठीक? कुरान कि बाइबिल? वेद कि धम्मपद? कौन सही? कौन गलत? इस झंझट में बुद्धिमान आदमी नहीं पड़ता। इस झंझट में जो पड़ जाते हैं वे कभी इस झंझट के बाहर नहीं आ पाते हैं। उस झंझट का कोई अंत ही नहीं है। उसमें तो एक उलझन में से दूसरी उलझन निकलती चली जाती है। एक प्रश्न का उत्तर हल करो, तो उस उत्तर में से दस नए प्रश्न खड़े हो जाते हैं। चलता ही चला जाता है। अंतहीन श्रृंखला है। उससे कभी कोई बाहर नहीं आ पाता।

नाना मतं महर्षीणां साधुनां योगिक तथा।
दृष्टव निर्वेदमापत्र को न शाम्यति मानव:।।
'ऐसा देखकर कि इस विवाद में क्या सार है? यह कहीं ले जाएगा नहीं..'

दृष्टव निवेंदमापत्र को न शाम्यति मानव:।
'ऐसा कौन व्यक्ति है जो इतनी—सी बात समझ कर शांत न हो जाए?'

शांत अगर होना है तो सिद्धातों से बचना। शांत अगर होना है तो मतवादों से बचना। शांत अगर होना हो तो हिंदू मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध होने से बचना। शांत अगर होना हो तो स्वयं में खोजना, सिद्धातों में मत भटक जाना।

नाना मतं महर्षीणां.......।
और सभी महर्षि हैं, झंझट तो यह है! अगर ऐसे ही होता कि एक आदमी बुरा होता और एक आदमी अच्छा होता, तो अच्छे की हम मान लेते, बुरे की हम छोड़ देते। यहां झंझट बड़ी गहरी है, दोनों अच्छे हैं। किसको पकड़ो, किसको छोड़ो! जीसस की सुनो कि मुहम्मद की? कि महावीर की? सभी अदभुत पुरुष हैं! सभी के व्यक्तित्व में बड़ा चमत्कार है। जब वे कहते हैं तो उनकी बातों में सम्मोहन है। लेकिन उलझना मत।

महर्षियों के बहुत—से सिद्धांत हैं, दार्शनिकों के बड़े सिद्धांत हैं। अगर उनमें उलझे तो कोई पारावार नहीं है, भटकते ही रहोगे। साधुओं के अनेक सिद्धांत हैं, योगियों के अनेक सिद्धांत हैं। सिद्धातों की भरमार है। जीवन एक है, जीवन को समझाने वाली दृष्टियां बहुत हैं। और जिसको तुम सुनोगे, वही ठीक लगेगा। जिसको तुम पढ़ोगे, वही ठीक लगेगा। निश्चित ही तुमसे ज्यादा प्रतिभाशाली लोगों ने उनको ईजाद किया है, महर्षियों ने ईजाद किया है, योगियों ने ईजाद किया है। तो उन्होंने जरूर बड़ा तर्कबल भरा है उनमें। तुम उससे प्रभावित हो जाओगे। लेकिन जब तुम दूसरे को सुनोगे, दूसरा ठीक लगने लगेगा। जब तुम तीसरे को सुनोगे, तीसरा ठीक लगने लगेगा। ऐसे तो तुम न घर के रहोगे न घाट के। ऐसे तो तुम दर—दर के भिखारी हो जाओगे।

ऐसा देख कर कि यह तो सिद्धांत और दर्शनशास्त्र का जाल चला ही आ रहा है, कभी समाप्त नहीं हुआ.......।

"भगवान रजनीश"

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