🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*किये आप आपै बड़े तत्व ज्ञाता,*
*बड़ी मौज पाई नहीं पक्षपाता ।*
*बड़ी बुद्धि जाकी तज्यौ है विवादू,*
*नमो देव दादू नमो देव दादू ॥७॥*
आपने स्वयं साक्षात्कार किये, ज्ञानोपदेश के द्वारा बड़े-बड़े तत्वज्ञानी पैदा किये ।(अपने सम्प्रदाय के शिष्यों को तत्वज्ञान का उपदेश किया ।) आप संसार से निष्काम होने के कारण निरन्तर आनन्दमग्न रहते हैं । संसार से तटस्थ होने के कारण, आपका न कोई प्रिय है न अप्रिय, अतः आपकी बुद्धि उदार है इसलिये आप किसी अहित नहीं सोचते ।
आप में झूठी पण्डिताई का ज़रा भी दर्प नहीं है, अतः आप किसी से व्यर्थ शास्त्रीय विवाद नहीं करते । ऐसे देवोत्तम गुरुदेव को मेरा बार-बार प्रणाम है ॥७॥
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*पढै याहि नित्यं भुजंगप्रयातं,*
*लहै ज्ञान सोई मिलै ब्रह्मतातं ।*
*मनो कामना सिद्धि पावै प्रसादू,*
*नमो देव दादू नमो देव दादू ॥८॥*
भुजंगप्रयात छन्द में निबद्ध इस गुरुदेव-महिमास्तोत्राष्टक काव्य का नित्य पाठ करनेवाला जिज्ञासु(गुरुकृपा से) ब्रह्मतत्व का ज्ञान प्राप्त कर लेता है ।
उसको धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष सम्बन्धी सभी सात्विक इच्छाएँ गुरु के कृपा-प्रसाद से अवश्य पूर्ण हो जाति हैं ! हे दयालजी महाराज ! आपको मेरा सैकड़ों बार, हजारों बार, लाखों बार, करोड़ों बार साष्टांग दण्डवत्-प्रणाम(सत्यराम) है१ ॥८॥
(१. साम्प्रदायिक परम्परा के अनुसार इस अष्टक के भुक्तिमुक्तिफलप्रद होने के कारण प्रत्येक दादूपन्थी साधु व् भक्तजन प्रतिदिन सन्ध्या समय इस का पाठ भी सामूहिक रूप से या व्यक्तितः अवश्य करते हैं ।)
(क्रमशः)
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