🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*= राम-अष्टक(ग्रन्थ १९) =*
.
*जलचरा थलचरा नभचरा जन्त जी ।*
*च्यारि हू खाँनि के जीव अगिनन्त जी ॥*
*सर्ब्ब उपजैं खपैं पुरुष अरु बाम जी ।*
*तुम सदा एक रस रामजी रामजी ॥६॥*
जल में रहने वाले, स्थल(जमीन) पर रहने वाले, नभ(आकाश) में रहने वाले सभी जन्तु(प्राणी) और जरायुज, अण्डज उदिभ्ज और औप पातिक इन चारों प्रकार के असंख्य प्राणी, पुरुष और स्त्री सभी इस संसार में उत्पन्न होते रहते हैं, मरते रहते हैं, परन्तु आप नित्य शाश्वत(अविनाशी) रूप से स्थिर उत्पत्ति-नाश से रहित रहते हैं ॥६॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें