रविवार, 15 अक्टूबर 2017

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卐 सत्यराम सा 卐
*दादू राम हृदय रस भेलि कर, को साधु शब्द सुनाइ ।*
*जानो कर दीपक दिया, भ्रम तिमिर सब जाइ ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

'एक आत्मा एक वस्तु में यह जगतरूप जो विकल्प जान पड़ता है, यह लगभग झूठा है।'
भिक्षु ने उत्तर दिया था कि रुमाल लगभग बदल गया है। यह सूत्र कहता है कि यह जो भेद का सारा जगत दिखाई पड़ रहा है, यह लगभग झूठा है। 'क्योंकि निर्विकार, निराकार और अवयवरहित वस्तु में भेद कहां, कैसे हो सकते हैं।' लगभग झूठा-थोड़ा समझ लेना जरूरी है, लगभग झूठे का क्या अर्थ है?
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सत्य है समझ में आता है।
झूठ है,यह भी समझ में आता है।
लगभग तो सब गड़बड़ कर देता है।
यह शब्द लगभग भारतीय चिंतना में बेहद मूल्यवान है। एक नया चिंतन का तल इस भारत देश ने निर्मित किया है। सारे जगत के चिंतन में दो विचार-कोटियां हैं : सत्य और असत्य।
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भारतीय चिंतना में तीन विचार-कोटियां हैं : सत्य, असत्य और लगभग की; बीच की - तीसरी। इस लगभग सत्य को, या लगभग झूठ को ही माया कहा गया है; मिथ्या कहा गया है। मिथ्या क्या है? साधारणतः तो लोग समझते हैं मिथ्या का अर्थ है झूठ, असत्य। नहीं, मिथ्या का अर्थ असत्य नहीं है। अर्थ है सत्य और असत्य के मध्य का। इसका अर्थ है कि असत्य तो है, लेकिन सत्य जैसा भासता है ; सत्य होने का भ्रम पैदा करता है।

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