#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू बिन बेसासी जीयरा, चंचल नांही ठौर ।*
*निश्चय निश्चल ना रहै, कछू और की और ॥*
==============================
साभार ~ स्वामी सौमित्राचार्य
"प्रपत्ति"
एक बात सोचिये, जब किसी व्यक्ति को किसी से कुछ माँगना होता है तो वह क्या सोचा करता है ??.. अधिकतर ऐसा होता है कि व्यक्ति उस चीज़ के बारे में नहीं सोच रहा होता है जो माँगनी है.. बल्कि उस व्यक्ति के बारे में सोच रहा होता है जिससे वो चीज़ माँगनी है.. उसके दिमाग में चल रहा होता है कि उस व्यक्ति के पास कैसे पहुँचें, खुद का व्यवहार और वाणी कैसी हो जिससे वो व्यक्ति खुश हो जाए..
.
सारा ध्यान इसी पर रहता है कि वो व्यक्ति हमसे खुश हो जाए.. क्योंकि पता है कि अगर वो व्यक्ति खुश हो गया तो चीज़ मिल ही जायेगी.. इसीलिए ‘चीज़’ के बारे में नहीं सोचते... पर यदि कोई चीज़ भगवान से माँगनी हो तो बात बिलकुल उल्टी होती है.. वहाँ लोग चीज़ के बारे में जादा सोचा करते हैं और भगवान के बारे में कम.. इसी को कहते हैं ‘चिंता’ करना.. भगवान तक कैसे पहुँचे, उनको कैसे खुश करें – यह प्रधान विचार नहीं होता है.. प्रधान विचार यही चल रहा होता है कि माँग पूरी होगी या नहीं, नहीं पूरी हुई तो क्या होगा, कोई दूसरा विकल्प भी देखें आदि-आदि..
.
इसके पीछे का मुख्य कारण है कि संसार के अस्तित्व में पूरा-पूरा विश्वास है और परमात्मा के अस्तित्व में आधा-अधूरा विश्वास है.. देखो, यह तो सबको पता है कि ‘भगवान’ वो है जो सब कुछ कर सकता है.. बस दिक्कत यही है कि ‘भगवान’ के होने में पूरा विश्वास नहीं हो पा रहा.. जिस दिन पूरा विश्वास हो जायेगा उस दिन ‘माँग’ की सोच छूट जायेगी और परमात्मा की सोच शुरू हो जायेगी.. चिंता छूट जायेगी और चिंतन शुरू हो जायेगा.. तब यही बात रहेगी कि हम कैसा व्यवहार करें जिससे परमात्मा हमसे खुश हो जाएँ.. तब मन में अधिकतर भगवान रहने लगेंगे और जिस मन में भगवान रहते हैं उस मन में उठने वाली इच्छा, उठने से पहले ही पूर्ण हो जाती है..
"स्वामी सौमित्राचार्य"

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें