मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

= राम-अष्टक(ग्रन्थ १९ - ८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= राम-अष्टक(ग्रन्थ १९) =*
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*पूरि दशहू दिशा सर्ब्ब मैं आप जी ।*
*स्तुति हि कौ करि सकै पुन्य नहिं पाप जी ॥*
*दास सुन्दर कहै देहु विश्राम जी ।*
*तुम सदा एक रस रामजी रामजी ॥८॥*
॥ समाप्तोSयं रामाष्टक-ग्रन्थ ॥
वस्तुतः देखा जाय तो आप ही सब दिशाओं में व्याप्त हैं । आपकी स्तुति सही अर्थों में कौन कर सकता है ? रह गयी बात ज्ञानी जनों की, वे इत्थन्तया स्तुति कर सकते हैं, परन्तु उन्हें ‘परमेश्वर ही सर्वव्यापक है’, ऐसा सपष्ट ज्ञान हो जाने पर(शुद्ध बुद्धावस्था प्राप्त हो जाने पर) उन विशिष्टजनों के लिये पाप-पुण्य का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है ।
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वे भी आपकी ही तरह कूटस्थ भाव से इस जगत् में विचरण करते हैं । प्रभो ! मेरी भी आपसे यही विनती(नम्र निवेदन) है कि मुझे भी उन्हीं ज्ञानिजनों की निर्विकल्प समाधि में कृपापूर्वक पहुँचा दीजिये कि मैं भी शाश्वत् रूप से उस ब्रह्मानन्द में निमग्न रह सकूँ और इस भावचक्र से छुटकारा पा सकूं ॥८॥
*= रामाष्टक ग्रन्थ समाप्त =*
(क्रमशः)

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