गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

= भेष का अंग =(१४/३१-३)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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दादू जग दिखलावे बावरी, षोडश१ करे श्रृंगार । 
तहं न संवारे आपको, जहं भीतर भरतार ॥३१॥ 
जैसे व्यभिचारिणी नारी पति को दिखाने के लिये ऊपर तो सोलह१ श्रृंगार करती है किन्तु चित्त जार की ओर लगा रहता है । वैसे ही पाखँड पूर्ण व्यक्ति रूप - बावरी सुन्दरी दिखाने के लिये भेष तो बहुत अच्छा करती है किन्तु जहां अन्त:करण में परमात्मा देखता है, वहां अपने को नहीं सुधारती=परमात्मा से निष्कपट प्रेम नहीं करती । 
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*इन्द्रियार्थी भेष*
सुध बुध जीव धिजाइ१ कर, माला सँकल बाहि । 
दादू माया ज्ञान सौं, स्वामी बैठा खाइ ॥३२॥ 
३२ - ३७ में कहते हैं - इन्द्रिय पोषणार्थ भेष उत्तम नहीं । इन्द्रिय पोषण के लिये भेष धारण करने वाले दँभी लोग, भोले लोगों को कपट पूर्ण ज्ञान की बातें सुना कर अपने में विश्वास१ करा लेते हैं और गले में अपनी कंठी माला रूप साँकल डाल, गुरु बन कर बांध लेते हैं । फिर गुरुजी बैठे २ उनके मायिक पदार्थों का उपभोग करते हैं । 
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जोगी जँगम सेवड़े, बौद्ध सँन्यासी शेख ।
षट् दर्शन दादू राम बिन, सबै कपट के भेख ॥३३॥ 
जोगी(नाथ), जँगम(टाली बजाते हुये भिक्षा माँगने वाले शैव साधु), सेवड़े(एक प्रकार के जैन साधु), बौद्ध धर्म के साधु, सँन्यासी, शेख(मुसलमानों का एक भेद); इन छ: दर्शनों के आदि सभी भेष धारी, भगवान् की भक्ति के बिना कपट के ही माने जाते हैं ।
(क्रमशः)

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