卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जैसे श्रवणा दोइ हैं, ऐसे होंहि अपार ।*
*राम कथा रस पीजिये, दादू बारंबार ॥*
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साभार ~ भक्ति कथायें
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*(((((( डाकू का नाम बताईये ? ))))))*
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जब प्रभु श्रीराम अपने धाम गए तब अयोध्या के पेड़, पोधे वृक्ष, लताये जड़ के सहित उखड-उखड कर भगवान के साथ, भगवत धाम - साकेत में चले गए। यहाँ तक कि जब पर्वतों ने देखा की प्रभु श्रीराम अपने धाम जा रहे हैं तब जड़ भी चेतन बन कर वे पर्वत भी प्रभु श्रीराम के साथ चल पड़े।
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अयोध्या की भूमि सूनी सी हो गयी अयोध्या जी स्त्री के रूपमें प्रकट हो कर विलाप करने लगी की, अरे ! मैं कैसी अभागिन हूँ जो यहाँ पड़ी-पड़ी अपने आपको उजड़ती हुई देख रही हूँ.. एक दिन अयोध्या जी दुखी मन से सरयू जी नदी के पास जा कर विलाप करने लगी कि, बहिन ! अब तुम्हारा होना भी व्यर्थ रह गया है, मेरे उजड़ जाने से अब हम अकेली रह गयी हैं। अयोध्या जी और सरयू जी अथाह दुःख के समुन्द्र में डूबी हुई प्रभु श्रीराम की बाते कर रही थी और आँखो से अश्रुधार बहा रही थी।
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इतने में एक राजकुमार घोड़े पर सवार, हाथ में धनुषबाण लिए वहा से गुजर रहे थे। उस राजकुमार ने देखा की यहाँ की भूमि इतनी उजड़ी सी क्यों लग रही है ? यहाँ के पेड़, पोधे, वृक्ष, लताये कहा चले गए ? राजकुमार ने देखा की दो स्त्रियां सरयू जी के किनारे बैठी दुखी मन से विलाप कर रही है, उनके नेत्रों से झर - झर आसु बह रहे है । राजकुमार घोड़े से उतर कर उन माताओ को प्रणाम करके कहा की, हे देवियो ! आप कौन है और आप रो क्यों रही हो ?
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अयोध्या जी ने कहा महाराज ! मैं यहाँ की भूमि अयोध्या हूँ और ये मेरी सखी सरयू जी हैं, आप हमारे रोने का कारण पूछ रहे हैं पर क्या कहें कुछ कहने की बात नही है, पर आप पूछ रहे है तो हम बता देती हैं. अयोध्या जी ने कहा महाराज ! कुछ काल पहले एक डाकू आया था उसने हमें खूब आनंद दिया था हम उनके आने से धन्य हो गयी थी, पर जाते समय वो डाकू यहाँ की सारी सम्पति को लूट कर ले गया हमें उजाड़ कर चला गया।
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राजकुमार ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर क्रोध मे भरकर कहा, माता जी ! मैं आपको वचन देता हूँ, मैं शीघ्र ही उस डाकू को युद्ध मे जीत कर आप की सम्पति आप को वापिस दिलवा कर ही जाऊंगा, आप हमें उस डाकू का नाम बताईये ? अयोध्या जी बोली, महाराज ! उस डाकू पर आपके धनुष का कोई असर नहीं पड़ने वाला वे बहुत बलशाली हैं, वे युद्ध में जीते नहीं जा सकते, वे तो प्रेम से जीते जा सकते हैं। राजकुमार आश्चर्य में पड़ गए कि डाकू को प्रेम से जीता जा सकता है ! ऐसा कैसा डाकू है ?
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पर जो भी है आप मुझे उनका नाम बताईये ? अयोध्या जी ने कहा "वे अखिल ब्रह्मांडनायक परब्रह्म परमेश्वर हैं, मुझे शोभायमान करने के लिए इस धरती पर राजा दशरथ पुत्र बन कर आये थे जो आपके पिता श्री राम है वहीं मुझे उजाड़ कर चले गए है। यहाँ के पेड़, पोधे, वृक्ष, लताये सब जड़ के सहित उखड़ कर उनके साथ चले गए और में यहाँ उजड़ कर रह गयी हूँ।
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वे राजकुमार कोई और नही थे भगवान श्रीराम के छोटे पुत्र कुश थे, महाराज श्री कुश ने कहा, माताजी ! अब मैं आप को वचन दे चुका हूँ की आपकी सम्पति आपको दिलवा कर ही जाऊंगा सो में मेरा वचन पूरा कर के ही जाऊंगा, पर उस मे आपको मेरी सहायता करनी होगी, आप कृपा करके मुझे बताईये, आप जिस रूप में प्रभु श्रीराम के रहने पर शोभायमान थी, वे सभी यथा योग्य स्थान मुझे बता दीजिये ?
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उसके बाद अयोध्या जी और सरयू जी ने प्रभु श्रीराम की बाल लीलाओ का चरित्र सुना कर जहाँ - जहाँ भगवान श्रीराम ने जो लीलायें की वे स्थान बताये। अयोध्या जी और सरयू जी के बताये हुवे स्थान को महाराज कुश ने यथा योग्य फिर से स्थापित किया। वे अयोध्या जी फिर से सज गयी वहां के पेड़, पोधे, वृक्ष, लतायें फिर से लहराने लगे। अयोध्या जी की सम्पति लौटा कर कुश महाराज अपनी राजधानी कुशावती को चल दिए।
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भगवान श्री कृष्ण की उजड़ी हुयी भूमि को उनके पड़पौत्र व्रजनाभ जी ने फिर से बसाया था और प्रभु श्रीराम की जन्म भूमि अयोध्या जी को उनके छोटे पुत्र महाराज श्री कुश ने बसाया था, ऐसा हमें पौराणिक ग्रंथों से मालूम होता है और अनुभव भी....!!
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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