卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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दादू स्वाँगी सब सँसार है, साधू विरला कोइ ।
जैसे चन्दन बावना, वन वन कहीं न होइ ॥१६॥
जैसे अन्य साधारण वृक्ष तो प्रत्येक वन में मिल जाते हैं किन्तु बावना चन्दन प्रत्येक वन में कहां मिलता है ? वैसे ही भेषधारी सभी सँसार में भरे हैं, किन्तु सच्चा सँत कोई विरला ही मिलता है ।
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दादू स्वाँगी सब सँसार है, साधु कोई एक ।
हीरा दूर दिशँतरा, कंकर और अनेक ॥१७॥
जैसे बहुमूल्य हीरे जैसे कंकर तो सभी स्थानों में अनेक मिलते हैं किन्तु असली हीरा तो कहीं दूर - दराज राजा - महाराजा या सेठ - साहूकार के पास ही मिलेगा । वैसे ही भेषधारी साधु तो सब सँसार में मिलते हैं, किन्तु सच्चा सँत तो कोई विरला ही मिलेगा ।
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दादू स्वाँगी सब सँसार है, साधू शोध सुजाण ।
पारस परदेशों भया, दादू बहुत पषाण१ ॥१८॥
जैसे साधारण पत्थर१ तो जहां तहां बहुत हैं किन्तु पारस तो विलुप्त ही होता है और खोज करने पर ही मिलता है । वैसे ही भेषधारी तो सब सँसार में हैं किन्तु हे बुद्धिमान् जिज्ञासु ! सच्चा सँत तो खोज करने पर ही मिलता है ।
(क्रमशः)

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