सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

= भेष का अंग =(१४/२२-४)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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स्वाँग सगाई कुछ नहीं, राम सगाई साच । 
दादू नाता नाम का, दूजे अँग न राच ॥२२॥ 
केवल भेष से ही प्रेम का सम्बन्ध बांधने से कोई लाभ नहीं किन्तु निरंजन राम के नाम - चिन्तन से प्रेम सम्बन्ध बांधने से सत्य परब्रह्म की प्राप्ति रूप लाभ होता है । अत: हे साधक ! नाम - चिन्तन से ही प्रेम का सम्बन्ध बांध, अन्य भेषादि के स्वरूप में अनुरक्त मत हो । 
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दादू एकै आतमा, साहिब है सब माँहिं । 
साहिब के नाते मिले, भेष पँथ के नाँहिं ॥२३॥ 
सभी प्राणी आत्म रूप से एक हैं और साक्षी रूप से परमात्मा सब में स्थित है । अत: परमात्मा के सम्बन्ध से ही सबसे प्रेम का व्यवहार करना चाहिये । भेष व पँथ का पक्षपात नहीं करना चाहिये ।
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दादू माला तिलक सौं कुछ नहीं, काहू सेती काम । 
अंतर मेरे एक है, अहनिशि१ उसका नाम ॥२४॥ 
माला तिलकादि बाह्य - चिन्हों से मेरा कुछ भी सम्बन्ध नहीं और न किसी देवी - देवता से ही मेरा काम है । मेरे हृदय में तो रात्रि - दिन१ उस एक परब्रह्म के नाम का चिन्तन ही रहता है ।
(क्रमशः)

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