सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

गुरु संयोग वियोग माहात्म्य का अंग ९(४१-४४)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*पढे न पावै परमगति, पढे न लंघै पार ।*
*पढे न पहुंचै प्राणियां, दादू पीड़ पुकार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**श्री रज्जबवाणी गुरु संयोग वियोग माहात्म्य का अंग ९**
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बैन बाजि निज नाम को, कहत सुनत जग माँहिं ।
पै रज्जब गुरु असवार बिन, कारज आवहिं नाँहिं ॥४१॥
अश्व का नाम कहने-सुनने से ही कोई कार्य नहीं होता, सवार द्वारा ही अश्व से कार्य होता है । वैसे ही जगत में अपने २ इष्ट का नाम सभी कहते सुनते हैं किन्तु भगवान नहीं मिलते । गुरु द्वारा उसकी साधना पद्धति जानकर आन्तर साधना करने से ही वह भगवत् प्राप्ति रूप कार्य सिद्ध करने में समर्थ होता है ।
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चाबुक अंकुश शब्द सत, हय गय मन पर धार ।
रज्जब गुरु असवार बिन, को काढै पशु मार ॥४२॥
चाबुक अश्व पर, अंकुश हाथी पर रख दिया जाय तो क्या वे जिस स्थान में हैं, वहाँ से रखने वाले के इच्छित स्थान पर जा सकते हैं ? नहीं । किन्तु उन पशुओं पर सवार बैठकर चाबुक, अंकुश मारते हुये चलावेगा तभी अभीष्ट स्थान पर जाँयेगे । वैसे ही मन ने सत्य शब्द रट लिये तो क्या है ? कुछ नहीं । गुरु उनका अर्थ समझाना रूप चोट मार कर मन को विषयासक्ति से निकाल के ज्ञान-मार्ग द्वारा परब्रह्म रूप स्थान में जाकर लय करता है तभी प्राणी मुक्त होता है । 
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शब्द पुराणी१ क्या करे, जे गुरु खाडती२ नाँहिं ।
रज्जब चले न बैल रथ, समझ देख मन माँहिं ॥४३॥
बैलों को चलाने की लकड़ी१ रथ पर रख दी जाये, तो रथ के बैल चलते हैं क्या ? हाली२ उस लकड़ी की चोट मार कर चलाता है । तभी बैल चलते हैं । वैसे ही मन में विचार कर देखो, गुरु के बिना केवल शब्द से शिष्य का मन साधना-मार्ग में नहीं चल सकता । गुरु जब साधना-पद्धति बतायेंगे तभी साधन-मार्ग से प्रभु को प्राप्त होगा ।
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विचार नाथ वायक दिया, लिया सु चेतन नाथ ।
रज्जब निजे देखतौं, चेला हाथों हाथ ॥४४॥
विचारशील गुरु रूप विचारनाथ ने उपदेश रूप शब्द प्रदान किया है और साधन में सावधान शिष्य रूप चेतननाथ ने ग्रहण किया, ऐसे शिष्य के हृदय में वर्तमान शरीर में देखते देखते ही हाथों हाथ ब्रह्म ज्ञान उत्पन्न हो जाता है ।
(क्रमशः)

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