#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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*विरक्तता*
कबीर विचारा कह गया, बहुत भाँति समझाइ ।
दादू दुनिया बावरी, ताके संग न जाइ ॥१६३॥
सँसारी प्राणियों के प्रभु प्राप्ति के साधनों से वैराग्य का परिचय दे रहें - विचारशील कबीरजी आदि सँत बहुत प्रकार समझा २ कर कह गये हैं - विषयासक्ति, जन्मादि क्लेश प्रदायिनी है किन्तु सँसारी जन तो माया मद से उन्मत्त हो रहे हैं । अत: कबीरादि के विचारों के साथ चलते ही नहीं ।
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*सूक्ष्म मार्ग*
पावैंगे उस ठौर को, लँघैंगे यहु घाट ।
दादू क्या कह बोलिये, अजहूं बिच ही बाट ॥१६४॥
सूक्ष्म अध्यात्म मार्ग की प्रगति का विचार कर रहे हैं - जब सँसार वन के साधक द्वैत अहँकार - पर्वत की भोग - वासना - घाटी को लाँघ जायेंगे तभी उस परम धाम को प्राप्त कर सकेंगे । किन्तु अभी तो जो उस घाटी को नहीं लाँघ सके, बीच के मार्ग में ही हैं । अत: भगवान् को अपना क्या साधना - बल बता रहे हैं कि - हमें परमधाम में क्यों नहीं बुलाते ? वो क्या साधन बजा कर कहे कि हम इसके बल से पहुँचेगे ।
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*सांच*
सांचा राता सांच सौं, झूठा राता झूठ ।
दादू न्याय नबेरिये, सब साधों को पूछ ॥१६५॥
सत्य प्राप्ति के साधन - निर्णय की प्रेरणा कर रहे हैं - सच्चा सँत सत्य परब्रह्म में ही रत रहता है । झूठा व्यक्ति मिथ्या साँसारिक भोगों में रत रहता है । अत: सभी सच्चे सँतों से परामर्श करके सत्य परब्रह्म की प्राप्ति के साधन का उचित निर्णय करो ।
(क्रमशः)

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